भक्ति ,तपस्या ,ज्ञान ये स्थूल चीज़े नही है । ये चैतन्य की अवस्थाऐ है
- भक्ति ,तपस्या ,ज्ञान ये स्थूल चीज़े नही है । ये चैतन्य की अवस्थाऐ है । ये संपत्ति की तरह अपने बच्चोंमे बाटी नही जा सकती है ।....ये केवल शक्तिपात से ही सुपात्र शिष्य को दी जा सकती है , जो उन्हे पूर्ण रूप से ग्रहण कर सके ।
- ईश्वरीय प्रेम यह एक महान तपस्या होती है । संत सूरदास की तरह प्रेम शून्य अवस्था तक पहुँचना चाहिए । इस अवस्था में शरीर का एहसास नही रहता है ।
- साधना के लिए जाग्रुत स्थल बहुत महत्व पूर्ण है । गाय के सिंग या पूछ दबाने से हम दूध प्राप्त कर नही सकते । सही स्थल पर ही जाना होगा , गाय के स्तन से ही दूध प्राप्त करना होगा ।
- बचपन में की हुई भक्ति सोने जैसी बहुमूल्य होती है जब मनुष्य एकाग्र हो सकता है क्योकि वह निर्दोष ,नीखालस ,निष्पाप तथा माया की वजह से हुई चिँताओँसे मुक्त रहता है ।
- हम मनूशोन के हात में सिर्फ एक ही चीज़ होती है , हमारा कर्म । इस तत्व को रुशी भी बदल नही सकते हम ही हमारे मन में कायम स्वरुपी बदलाव ला सकते है ।
- चिंता तथा चिंतन अलग चीज़े है । पहली हमे अंध:कार की तरफ ले जाती है और दूसरी प्रकाश की और ।
- त्याग ,तपस्या ,तथा पवित्र जीवन से मनुष्य नारायण बन सकता है ।
- मन ,बुद्धि तथा सभी ज्ञानेन्द्रीयों से मौन में रहा जाता है ।दुसरोंकि सुनना मौन का भंग करना है ।
- जब तक अहंकार पिघल नही जाता ,आत्मा और शरीर का भेद जाना नही जाता है ।
म..चैतन्य
जून २०११
जून २०११
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