बीछ में कुछ बड़े -बड़े ऊँचे वृक्ष बड़ी शान से खड़े रहते थे

बीछ में कुछ बड़े -बड़े ऊँचे वृक्ष बड़ी शान से खड़े रहते थे। ऐसा लगता था मानो एक माता अपने कई छोटे - छोटे बच्चों को लेकर खड़ी हो। और ऊँचे वृक्ष को सामूहिकता में देखने पर लगता है कि कई मातऍ अपने- अपने बच्चों को लेकर किसी इंतजार कर रही हो। और इन छोटे-छोटे के पिता ते सूर्य। सभी सूर्य देवता की राह देख रहे थे, कब सूर्यदेव प्रगट (प्रकट) होंगे , कब अपनी ऊरजाशक्तिभरी, कोमल -कोमल प्रकाश की किरणे डालकर सभी झाड़ों पर अपनी प्रेम की वर्षा करेंगे। और वह समय भी आ गया। सामने के दोनों पहाड़ों के बीच में सूर्य का उदय हो रहा था। मुझे भी जीवन में सूर्योदय का प्रतीक्षा करना सदैव अच्छा लगता है। सूर्य के दर्शन हो रहे थे। एक नारंगी रंग के गोले जैसा आकार धीरे -धीरे ऊपर आ रहा था। धीर-धिरे उसने एक ऊँचाई भी प्राप्त कर ली और फिर उसकी कोमल-कोमल किरणों सभी बगीचों पर एक समान , एक जैसी पड़ने लग गई। मानो सूर्यदेवता चलकर झाड़ोंरूपी बच्चों को एक -सा प्यार दे रहे हों। सूर्य की विशेषता है- वह सभी के समान ऊर्जा प्रधान करता है। कोई उसकी ऊर्जा ग्रहण करता है, कोइ नहीं। वह उसकी परवाह नहीं करता, वह तो अपनी ओर से समान ऊर्जा देता है।
सारा चाय के बागान ही चैतन्य से भर गया। मैं ने देखा तो दूर से ' सुमा ' का चेहरा दिख रहा था क्योंकि चाय के पौधों के कारण चेहरा और गर्दन तक का भाग ही दिखता था। वह पास आया और बोला, "यह बागान इतना बड़ा है कि प्रतिदिन सभी जगहों की देख - रेख संभव नही है। मैं इसलिए रोज एक भाग का निरीक्षण करने का कार्य करता रहता हूँ।" फिर हम दोनों बैठ कर आराम से चाय पीने लगे।


हि.स.यो-४
पुष्ट-५३

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