देह के आकर्षण

और तू अपनी करीबवाली सीट (आसन) उस स्त्री को केवल इसलिए देता है कि वह स्त्री सुन्दर है, ऐसी सुंदर स्त्री अगर तेरे पास बैठी तो ऐसी सुंदर स्त्री के सुंदर शरीर का कोमल स्पर्श तुझे प्राप्त होगा, उसके सुंदर शरीर का संग तुझे प्राप्त होगा। और तू तेरी कल्पना में उस स्त्री के करीब भी जाने की सोचेगा और उस स्त्री के अंग अंग को निहरेगा। यानी अपनी वासनाओं की पूर्ति के लिए ही तू अपने पासवाला स्थान बैठने को उस स्त्री को देगा। स्थान देने का पीछे उद्देश केवल वासना ही होगी।तो इस प्रकार का तेरा व्यवहार वासनामय चित्त के अंतर्गत आता है। यह मनुष्य की सबसे निचली अवस्था है जहाँ मनुष्य उसके शरीर के स्तर से ऊपर ही नहीं उठा है। इस स्तर के मनुष्यों का आध्यातमिक स्थिति से दूर - दूर तक भी कोई नाता नहीं होता है।""अब इस स्थर से ऊपर स्थर है - एक संस्कारित मनवाली स्थिति। इसी स्थिति में उस सुंदर स्त्री को देखकर तेरे मन में परोपकार की भावना जागृत होती है और तू उसे अपनी पास वाली सीट बैठने के लिए देता है। और साथ ही स्वयं उस सीट से उठकर खड़ा इसलिए हो जाता है कि उस सुंदर स्त्री का स्पर्श तुझे न हों और उसके स्पर्श से तेरी वासनाएँ जागृत न हो। तू आपनी वासनाओं पर नियंत्रण रखना चाहता है यानी तू अपने प्रति सतर्क है। तू यह मानता है कि तू गिर सकता है। तुझे गिरने का डर है और गिरने से अपने - आपको बचाना चाहता है। यानी देह के आकर्षण से ऊपर उठा है लेकिन अभी भी चित्त पर नियंत्रण नहीं है।
हि स यो-४
पुष्ट -५८

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