आध्यात्मिक सत्य


  • वास्तव में स्वीकार करने के अलावा जीवन में कोई रास्ता नही है ।
  •  जीवन में दुःख मिला वह स्वीकार है । "प्रभु ,तेरी जैसी इच्छा ! तेरी इच्छा के आगे किसी की कभी चलती है ? मुझे वह भी स्वीकार है ।" स्वीकार करो और शांत रहो ।
  • जीवन में सुख मिला "प्रभु , तेरी क्रुपा से मिला है ,स्वीकार है "।
  • समर्पण ध्यान सुख और दुःख से ऊपर की स्थिती है । इसमें दोनो स्वीकार है ।

आध्यात्मिक सत्य 

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