प्रत्येक मन्त्र की अपनी एक ऊर्जा होती है

प्रत्येक मन्त्र की अपनी एक ऊर्जा होती है | प्रश्न है, हम कितनी मान्यता उस मन्त्र को देते हैं | उसके ऊपर ही हमारी ग्रहण करने की शक्ति निर्भर होती है | मानो कि मन्त्रशक्ति तो कपूर के समान है - जब तक आत्मा की मान्यतारूपी आग उस तक नहीं पहुँचती , वह तो अपनी जगह पर है; वह चाहकर भी अपने स्थान पर नहीं जल सकता है और न ही प्रकाशित हो सकता है | *मन्त्र की शक्ति मन्त्र को माननेवाले की ग्रहण करने की क्षमता पर ही है | मन्त्र तो ऊर्जा का एक खजाना होता ही है, बस उसे जाननेवाले और पहचाननेवाले आत्मा की आवश्यकता होती है |

* हि.स.यो-४| पृष्ठ-१५४

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