हिंसा करना मनुष्य का स्वभाव नहीं हैं
“ हिंसा करना मनुष्य का स्वभाव नहीं हैं , हिंसा करके मनुष्य अपने ही
स्वभाव के विपरीत आचरण कर रहा है , अपने ही आत्मा के विरोध में कार्य कर
रहा हैं | हम जब भी किसी भी प्रकार की हिंसा करते हैं तो हम हमारे आत्मा के
विरोध में कार्य करते हैं , आत्मा कमजोर हो जाती हैं और कमजोर आत्मा
अध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकती हैं | अध्यात्मिक प्रगति के लिए अहिंसा का
पालन करना हमारा धर्म ही हैं | हिंसा अलग-अलग प्रकार की होती हैं | आप सभी
प्रकार की हिंसा से बचो | शारीरिक हिंसा हो , मानसिक हिंसा हो या
आर्थिक हिंसा हो , सभी प्रकार की हिंसा आत्मा के विरोध में ही होती हैं
मनुष्य स्वभाव से मुलतः नहीं हैं , बुरी आत्माए उसको माध्यम बनाकर हिंसा
कराती हैं | वातावरण के हिंसक विचार मनुष्य में हिंसा का निर्माण करते हैं |
कोई भी जन्म से हिंसक नहीं होता हैं , आसपास का वातावरण और संगत ही मनुष्य
को हिंसक बनाती हैं | हिंसक बनना यानि मनुष्यता को मारना हैं | अपने भीतर
की मनुष्यता को मारकर ही हिंसक बना जा सकता हैं , यानि हिंसक बनने के लिए
मनुष्य को अपना मनुष्यत्व खोना पड़ता हैं | और मनुष्यत्व खोने के बाद मनुष्य
का होना क्या काम का हैं ? इसे मनुष्य की आत्मा मनो मर ही जाती हैं | ”
- हिमालय का समर्पण योग - ४
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