चैतन्य की भाषा
चैतन्य की अपनी अलग भाषा है | एकबार वह भाषा सीख गए ,तो फिर पुस्तक की भाषा समझने की आवश्यकता नहीं है |-- दुनिया में ऐसी कोई भाषा नहीं है जिसे पुस्तक से पढ़ा जाए और सभी को समझ में आ जाए | केवल चैतन्य की भाषा परमात्मा और आत्मा की भाषा है | इसमें शब्द नहीं है ,अनुभूति है और अनुभूति से ज्ञान प्राप्त हो सकता है | और इसी चैतन्य की भाषा पर मनुष्य की ही नहीं पशु - पक्षियों की भाषा भी जुडी हुई है | इसमें ( चैतन्य की भाषा में) नाद होता है ,शब्द नहीं होते हैं और नाद एक चैतन्य का निर्माण करता है |
हि.स.यो.२/६३
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