श्रीमती लक्ष्मीबहन

 श्रीमती लक्ष्मीबहन की इच्छा थी कि मैं वर्धा में पवनार आश्रम में भी यह ध्यान का शिबिर लूँ। उन्हें यह शिबिर और बताने का सरल तरीका पसंद आया था। वे एक दिन बोलीं , आप इतना  सरलता से  समझाते हो  कि अनपढ  आदमी हो तो भी उसके समझ में आ जाए। साधे , सरल शब्द होते हैं। इसीलिए वह सामने वाले के हृदय तक पहुँच जाते हैं और इसी कारण वह जल्दी समझ जाता है। दूसरा , मुझे अच्छा लगा कि आपका शिबिर जाती , धर्म आदि सीमाओं से परे है। कोई भी जाति का , कोई भी भाषा का , कोई भी धर्म का मनुष्य इस में भाग ले सकता है। आज हमारे देश को ऐसे शिबिर की बड़ी आवश्यकता है। इस शिबिर से इन्सानियत बढेगी और अगर इन्सानियत बढेगी तो इन्सान-इन्सान में जो भी फर्क है , वह दूर होगा

*हि.का स.यो.भाग- ६/१४२*

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