सुख यानि क्या ?
फिर अहंकार आड़े आता है। वह बुद्धि के स्तर पर सुख को जानने का प्रयास करता है। पुस्तकों को पढ़कर , प्रवचनों,सत्संग में जाकर ज्ञानप्राप्ति कर सुख को भी जानने का प्रयास करता है। वास्तव में , सुख यानि क्या , यह आत्मसुख की खोज फिर उसे किसी जिवंत गुरू के सान्निध्य में ले जाती है । और फिर उसके सान्निध्य में अनुभूति जब होती है , वह तब जान पाता है की आत्मसुख क्या है। और फिर बुद्धि भी गिर जाती है और वह परम सुख को प्राप्त हो जाता है। और फिर परमसुख में ही रममाण हो जाता है , उसका सारा विश्व वहीँ रममाण हो जाता है , उसका सारा विश्व वहीं पर सीमित हो जाता जाता है। पर यहाँ तक पहुँचने में मनुष्य को अपने जीवन का बड़ा हिस्सा खोना पड़ता है। यह जानने में काफी उम्र चली जाती है। यह सब बड़ी प्रक्रिया है।
*हिमालय का समर्पण योग २/९७*
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