प्रत्येक सुबह मनुष्य का चित्त भी एक छोटे बच्चे की तरह होता है। आप सुबह-सुबह चित को जो भी आकार दो वैसा ही वह दिनभर बना रहता है। *सुबह उठने के बाद के हमारे दो धण्टे बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं।*

*अगर हमें सुबह के समय दो धण्टे अपने चित्त को भीतर रखना आ गया तो फिर स्थिर रहना (चित का)  और शुद्ध रहना स्वयं ही हो जाएगा।*

          ------- बाबा स्वामी
                 👏👏👏👏

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