परमात्मा यानि एक विश्वचेतना

आध्यात्मिक मनुष्यों की भी उपासना पध्दतीयाँ अलग- अलग होती हैं,पर वे उपासना पद्धतियों से आगे प्रगति करके ये जान चुके होते हैं कि परमात्मा यानि एक विश्वचेतना है जिसका कोई रूप और रंग नहीं है। वह चेतना शक्ति सारे विश्व में कण-कण में है। वह मेरे भीतर भी आत्मा के रूप में वास करती रहती है। परमात्मा को बाहर खोजने की आवश्यकता नहीं है। वह तो मेरे ही भीतर है। परमात्मा मेरे भीतर है इसलिए मैं जीवित हूँ। ये आध्यात्मिक लोग परमात्मा को बाहर नहीं खोजते क्योंकि इनकी सारी खोज भीतर की ओर ही रहती है। यह परमात्मा के करीब भीतर और भीतर जाने का प्रयास करते रहते हैं।
इन आध्यात्मिक लोगों की भी उपासना पद्धतियाँ अलग-अलग हों फिर भी ये झगडते नहीं हैं । इनमें आत्मीय भाव होता है कि हम सब 'आत्मा' हैं । ये पूर्ण समाधानी होते हैं।

*आत्मेश्वर(आत्मा ही ईश्वर हैं) ३४*

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