मेरे गुरु बोलते हैं कि तेरी पत्नी शक्तिस्वर है और वह मुझे भी सच ही लगता है।
धर के सारे कार्य वही करती है। रिश्तेदारों के कार्य हो , समाज के कार्य हों , बच्चों के कार्य हों सभी जगह वही मोर्चे पर होती है। मैं तो सभी जगह पीछे रहता हूँ। तो मुझे तो कभी - कभी लगता है कि पत्नी शक्तिस्वरूपा देवी है और मैं एक अगरबत्ती की तरह उसके सामने दिन-प्रतिदिन जल रहा हूँ। और जो अगरबत्ती की सुवास वातावरण में चैतन्य के रूप में बहती है , उस सुगंधित खुशबू से लोग पर्सन होते हैं। और राख अगरबत्ती में से गिरती है , उसे अपने मस्तकवको लगते हैं। वैसे जो समय मैं लोगों के साथ बिताता हूँ , लोग उसे कभी भी भुल नहीं पाते हैं।
भाग ६ - १५०

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