पुस्तक के माध्यम से अपने शिष्यों में निर्माण
मेरी बहुत इच्छा थी की मै इस दुनिया को उन मेरे गुरुओ के माध्यम के बारे मे बताऊ जिन्होंने मुझ मे यह आत्मविश्वास निर्माण किया की मै भी उन जैसा बन सकता हू, मै उनके जैसी आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त कर सकता हू , आज यही आत्मविश्वास मै भी पुस्तक के माध्यम से अपने शिष्यों में निर्माण करना चाहता हू, की जब "स्वामीजी" जीवन की इतनी कठिनाईयो से निकलकर "आत्मज्ञान" पा सके तो "मै क्यो नही पा सकता". यह आत्मविश्वास अगर इस पुस्तक के माध्यम से निर्माण हो सका तो इस पुस्तक लिखने का उद्देश्य पूर्ण हो गया।
*हिमालय का समर्पण योग २/१४*
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