chandrakant malani:
🌸॥ " माँ  " ॥🌸
 पुष्प = १=पृष्ठ ३७
     वे [ आगंतुक ] कह  रहे  थे ,"लोग  धर्म  और  आध्यात्म  में  भेद  नही  समझते ।आध्यात्म  में  आत्मा  का  अध्ययन  होता  है , इसमें  कोई  कर्मकांड  नही  होता ।धर्म  में  कम  या  जादा  कर्मकाण्ड  होते  है ।धर्म  हमें  आध्यात्म  तक  पहुँचने  में सहायता  करते  है  किंतु  आध्यात्मिक  प्रगति  के  लिए  धर्म  तथा  धार्मिक  कर्मकांडों  से  ऊपर  उठना  होगा । 
{ आगंतुक }
Dharmesh Patel:
🌿🌷जय बाबा स्वामी🌷🌿
   🌸🌸🌸🙏🌸🌸🌸
जिस मंत्र की शुरुआत संस्कृत में हुई थी लेकिन उस मंत्र को मान्यता हिंदी में मीली तो एक सामूहिक शक्ति हिंदी के साथ है। आप तो हिंदी अच्छी ही बोल सकती हैं। वे बोलीं , श्री विनोबा भावेजी के भी संपर्क में आते थे वे  हिंदी भाषा जानते ही थे। हिंदी भाषा को सीखने पवनार में विश्व के कोने-कोने से लोग आते हैं। और पवनार  आश्रम से हजारों लोगों ने हिंदी भाषा सीखी है। और हमें गर्व है कि यह हमारी राष्ट्रभाषा हैं। मैंने बातें आगे बढाते हुए कहा , जैसा मंत्र का जाप मैंने बचपन से किया तो मैं एक पवित्र आत्मा बना। शरीर का अहंकार मैं निर्माण हो ऐसा कोई कार्य मेरे शरीर से नहीं हो सका। क्योंकि ऐसी ही आसपास परिस्थितियाँ रहीं और ऐसे पूछोगे तो मुझे कुछ कमी नहीं है। अच्छी पत्नी है , एक अच्छी आमदनी धर में आती है। मुझे तीन बच्चे है। अच्छा धर है , सब है। लेकिन जो है। उसमें मैं नहीं हूँ । और उसमें न मेरा कोई योगदान है। दुसरा , इसकी कोई मुझे आत्मग्लानी नहीं है। मैं यह सत्य स्थिति सामने रख रहा हूँ कि परमात्मा अपने माध्यम को आवश्यक सुख-सुविधा सब देता है। ताकि मैं का अहंकार ही निर्माण न हो सके। और परमात्मा को मेरी लगनेवाली प्रत्येक आवश्यकता के पूर्व ही वह पूर्ण कर देता है। भले ही वह मुझे मालूम भी न हो।
भाग -६  -१५१
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