सूर्यास्त को देखकर प्रार्थना
सूर्यास्त को देखकर प्रार्थना की , "गुरुदेव , मैं सूर्य के रूप में आपको वंदन कर रहा हूँ। अब मैंने मेरा सारा अस्तित्व ही आपको समर्पित कर दिया है। अब मेरी निजी , ऐसी कोई प्रार्थना नहीं है। अब मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है , तो फिर निजी प्रार्थना कैसे हो सकती है? मैं तुम्हारी लीला समझने में असमर्थ हूँ। अब तुम जैसा चाहो वैसा ही हों। जीवन की सभी घटनाएँ आपकी इच्छा नुसार हो , बस यही प्रार्थना है।"
*हि. का स. यो. २/२८*
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