🌹21. जय बाबास्वामी.🌹

   " सद्गगुरु एक माध्यम"...३.

२१.  शरीर हमें विचलित कर सकता है, और करेगा ही। शरीर विचलित करने के लिए ही बना है।

२२. यह करने का अभ्यास करना होगा। यह केवल चैतन्य पर चित्त रखने के अभ्यास से ही संभव है।

२३.  नाशवान शरीर के भीतर शाश्वत चैतन्यरूपी   परमात्मा छुपा है। शरीर तो छिलकामात्र है। उसे अलग करके ही देखना होगा।

२४.  सदगुरु का शरीर साधक भी है और बाधक भी है। शरीर का उपयोग चैतन्य की तरफ चित्त ले जाने के लिए किया तो साधक है और नहीं किया तो बाधक है।

२५.  इसी शरीर की बाधकता के कारण ही सदगुरु को उनके जीवनकाल में बहुत  विरले ही व्यक्ति जान पाते हैं।

२६.  शरीर  का आवरण समाप्त होने के बाद उस सदगुरु को पहचाना जाता है। पर तब बहुत देर हो चुकी होती है।

२७.  स्थूल शरीर आया तो स्थूल शरीर के दोष आएँगे ही। हमें यह देखना नहीं है, अनुभव करना है कि कौनसा वह चैतन्य है जो लाखों लोग ग्रहण करते हैं।

२८.  किस चैतन्य से यह सामान्य शरीर लाखों लोगों से जूडा है और लाखों लोग इस शरीर से जुडे हैं।

२९.  यह ग्यान जिसे प्राप्त हो गया, उसे यह शरीर साधक सिद्ध होगा, आन्यथा नहीं।

३०.  चैतन्यरूपी  'नारियल का मीठा पानी' पीने के लिए हमें शरीररुपी छिलके के भीतर झाँकना ही होगा।

आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ४०-४१.

उनका कहना था, हम वो माताएँ हैं जिनके बच्चे इन उग्रवादी गतिविधियों में लिप्त हैं ऐसी हमारी शंका हैं। बच्चों से संपर्क नहीं है और न ही हमारी उनसे कोई बातचीत होती है। लेकिन जो भी बच्चों से जाना है , उनके मन में सरकार के प्रति आकोश है और वह सब किसने उनके मन में भर दिया है यह पता नहीं है। लेकिन वे सब पठे-लिखे बच्चे हैं लेकिन सदैव आलोचनात्मक ही बातें करते हैं। हमारी इच्छा है कि आप उन्हें ध्यान सिखाएँ और वे ध्यान करने लग जाएँगे तो उनमें भी सकारात्मक विचार आएँगे और वे भी अपने राष्ट्र की मुख्य धारा में जुड़ सकेंगे। मैंने कहा , मुझे उनसे मिलने में कोई डर नहीं है और मेरा दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक है। प्रयत्न करके देखने में कोई हर्ज नहीं है। कम- से- कम आपको तो एक समाधन मिल जाएगा कि आपने प्रयत्न किया। मुझे कोई हर्ज नहीं है। तो तीन दिन बाद का समय निच्छित किया गया। वह महिला बोली , मेरे ही भाई के खेत पर एक धर गोदाम जैसा बड़ा है, वहाँ पर आपको लेकर मैं चलती हूँ। रात को उस खेत पर मैं अकेला ही गया था। लड़के को नहीं ले गया। रात को वहीं सो गया तो सुबह कुछ युवक मुझसे मिलने आए। हमारी समय चर्चा चली की ध्यान क्या है? क्यों करना चाहिए ? हम भूतकाल के विचार करते हैं वे बंद हो जाएँगे , जो हम भविष्यकाल के विचार करते हैं वे बंद हो जाएँगे। हम निर्विचार स्थिति में चले जाएँगे। तो वे बोले , इतना अन्याय हो रहा है , इतना अत्याचार हो रहा है , हम निर्विचार कैसे रह सकते हैं ? वे काफी बड़े समूह में थे , मैं अकेला ही था। दिखने को तो सामान्य युवक ही लग रहे थे। चेहरे-मोहरे से भी सामान्य ही थे। लेकिन सभी व्यवस्था से अतृप्त थे , असमाधिनी थे।
भाग  - ६ -१५३/१५४

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