मेरी बात पर लक्ष्मीबहन खूब हँसीं। वी बोलीं आपकी कल्पना बड़ी अच्छी होती है। और वे हँसने लग गई। मुझे उनको हँसता देख बड़ा अच्छा लगा। मेरी किसी बात से वह खुश तो हुई और सामनेवाले को खुश करना, प्रसन्न करना मेरा स्वभाव-सा हो गया है। दूसरा , मैंने कहा कि जो आप अपने-आपको मानते हो , वैसे ही आप हो सकते हो। मैं बचपन से एक मंत्र का जप करता था - मैं एक पवित्र आत्मा हूँ , मैं सके शुद्ध आत्मा हूँ । यह मंत्र मैं मेरे पूर्वजन्म से ही लेकर आया था। इसे मैंने जन्म से ही प्रारंभ किया है। इसे मुझे इस जन्म में किसी ने भी सिखाया नहीं है। यह मंत्र मूलत किसी भाषा में प्रथम बोला गया , वह मालूम नहीं। पर जब मुझे हिंदी नहीं आती थी , तब भी यह मंत्र मैं ऐसे हिंदी में ही बोलता था। हो सकता है , यह मंत्र पहले संस्कूत में हो। लेकिन इसे सामुहिकता हिंदी भाषा में ही प्राप्त हुई है। अब यही मंत्र आप किसी भी भाषा में बोलो तो भी वह इतना प्रभावशाली नहीं लगेगा जितना हिंदी में लगता है। इसका कारण है - मान्यता । इस मंत्र को मान्यता हिंदी भाषा में ही प्राप्त हुई है। मैंने इसे मराठी में भी बोलकर देखा है।
भाग - ६ - १५०/१५१

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