मेरे गुरु बोलते हैं कि तेरी पत्नी शक्तिस्वर है और वह मुझे भी सच ही लगता है।
धर के सारे कार्य वही करती है। रिश्तेदारों के कार्य हो , समाज के कार्य हों , बच्चों के कार्य हों सभी जगह वही मोर्चे पर होती है। मैं तो सभी जगह पीछे रहता हूँ। तो मुझे तो कभी - कभी लगता है कि पत्नी शक्तिस्वरूपा देवी है और मैं एक अगरबत्ती की तरह उसके सामने दिन-प्रतिदिन जल रहा हूँ। और जो अगरबत्ती की सुवास वातावरण में चैतन्य के रूप में बहती है , उस सुगंधित खुशबू से लोग पर्सन होते हैं। और राख अगरबत्ती में से गिरती है , उसे अपने मस्तकवको लगते हैं। वैसे जो समय मैं लोगों के साथ बिताता हूँ , लोग उसे कभी भी भुल नहीं पाते हैं।
भाग ६ - १५०
मेरी बात पर लक्ष्मीबहन खूब हँसीं। वी बोलीं आपकी कल्पना बड़ी अच्छी होती है। और वे हँसने लग गई। मुझे उनको हँसता देख बड़ा अच्छा लगा। मेरी किसी बात से वह खुश तो हुई और सामनेवाले को खुश करना, प्रसन्न करना मेरा स्वभाव-सा हो गया है। दूसरा , मैंने कहा कि जो आप अपने-आपको मानते हो , वैसे ही आप हो सकते हो। मैं बचपन से एक मंत्र का जप करता था - मैं एक पवित्र आत्मा हूँ , मैं सके शुद्ध आत्मा हूँ । यह मंत्र मैं मेरे पूर्वजन्म से ही लेकर आया था। इसे मैंने जन्म से ही प्रारंभ किया है। इसे मुझे इस जन्म में किसी ने भी सिखाया नहीं है। यह मंत्र मूलत किसी भाषा में प्रथम बोला गया , वह मालूम नहीं। पर जब मुझे हिंदी नहीं आती थी , तब भी यह मंत्र मैं ऐसे हिंदी में ही बोलता था। हो सकता है , यह मंत्र पहले संस्कूत में हो। लेकिन इसे सामुहिकता हिंदी भाषा में ही प्राप्त हुई है। अब यही मंत्र आप किसी भी भाषा में बोलो तो भी वह इतना प्रभावशाली नहीं लगेगा जितना हिंदी में लगता है। इसका कारण है - मान्यता । इस मंत्र को मान्यता हिंदी भाषा में ही प्राप्त हुई है। मैंने इसे मराठी में भी बोलकर देखा है।
भाग - ६ - १५०/१५१
🕉॥ माँ ॥ 🕉
माध्यम हमारी माँ है । हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है , यह हमसे अधिक उस माध्यम को मालूम है तो फिर माँगना क्या ?जो है , उसमेँ हम खुश है और जो नही है , वह आवश्यक भी नही है । और जो आवश्यक नही है , वह माँगना क्यों ?. . .
ही.का.स.योग...5...
🙏🏻🌹आध्यत्मिक मार्ग में प्रगति करने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है - पुण्यकर्म | अगर हमारे पास पुण्यकर्म है तो ही हमारे को शुद्ध इच्छा हो सकती है | और शुद्ध इच्छा वह इच्छा है जो आत्मा की होती है | और बाद में वह इच्छा ही आपके आसपास परिस्थिति निर्माण करती है और धीरे - धीरे आपके जीवन में किसी "सद्गुरु" का आगमन होता है और सद्गुरु के माध्यम से "अध्यात्म का बीज" प्राप्त होता है | यह सब होता है अपने पुण्यकर्म के कारण और फिर मनुष्य की शुद्ध इच्छा ही उस बीज को अंकुरित करती है ,बढाती है | आध्यात्मिक प्रगति के लिए सद्गुरु एक निमित्य है लेकिन उनके बिना प्रगति संभव ही नहीं है |🌹🙏🏻
🍃हि.स.यो.५/२७ 🍃🕊
🌿🌷जय बाबा स्वामी🌷🌿
🌸🌸🌸🙏🌸🌸🌸
जिस मंत्र की शुरुआत संस्कृत में हुई थी लेकिन उस मंत्र को मान्यता हिंदी में मीली तो एक सामूहिक शक्ति हिंदी के साथ है। आप तो हिंदी अच्छी ही बोल सकती हैं। वे बोलीं , श्री विनोबा भावेजी के भी संपर्क में आते थे वे हिंदी भाषा जानते ही थे। हिंदी भाषा को सीखने पवनार में विश्व के कोने-कोने से लोग आते हैं। और पवनार आश्रम से हजारों लोगों ने हिंदी भाषा सीखी है। और हमें गर्व है कि यह हमारी राष्ट्रभाषा हैं। मैंने बातें आगे बढाते हुए कहा , जैसा मंत्र का जाप मैंने बचपन से किया तो मैं एक पवित्र आत्मा बना। शरीर का अहंकार मैं निर्माण हो ऐसा कोई कार्य मेरे शरीर से नहीं हो सका। क्योंकि ऐसी ही आसपास परिस्थितियाँ रहीं और ऐसे पूछोगे तो मुझे कुछ कमी नहीं है। अच्छी पत्नी है , एक अच्छी आमदनी धर में आती है। मुझे तीन बच्चे है। अच्छा धर है , सब है। लेकिन जो है। उसमें मैं नहीं हूँ । और उसमें न मेरा कोई योगदान है। दुसरा , इसकी कोई मुझे आत्मग्लानी नहीं है। मैं यह सत्य स्थिति सामने रख रहा हूँ कि परमात्मा अपने माध्यम को आवश्यक सुख-सुविधा सब देता है। ताकि मैं का अहंकार ही निर्माण न हो सके। और परमात्मा को मेरी लगनेवाली प्रत्येक आवश्यकता के पूर्व ही वह पूर्ण कर देता है। भले ही वह मुझे मालूम भी न हो।
👉👉 From Jadeja ji 👆👆
भाग -६ -१५१
🌸श्री गुरुशक्ति आवाहन 🌸
🎍संदर्भ :-- आत्मेस्वर 🎍
💎कुछ अंश 💎
मेरी बताने की भी एक सीमा है उससे अधिक मैं आपको नही बता सकता । आप आपके आत्मा पर चित्त रखकर ध्यान करो ,आत्मा जिस स्थान पर होती है , वह स्थान बर्फ जैसा ठंडा अनुभव होगा । यह मेरा अनुभव है । आप अपना स्वयं का अनुभव लेकर देखो । आध्यात्मिक क्षेत्र तो समुद्र के समान है । . . .
पूज्य गुरुमाऊली ~~~🕉
➰🙏🏻 *॥जय बाबा स्वामी॥* 🙏🏻➰
मैं किसी भी मनुष्य की जीवन की सफलता के लिए यह देखता हूँ , उसके माँ-बाप उससे प्रसन्न है या नहीं क्योंकि वह उनकी निर्मिती है। अगर उसका 'निर्माता' ही उससे प्रसन्न न हो , तो उस जीवन की क्या सफलता!
*आत्मेश्वर/६४*
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🙏🏻🌹एक साधक की स्तिथि कुमारिका जैसी है | बिना पुरुष के बच्चा हो ही नहीं सकता यह जितना सत्य है ,उतना ही यह भी सत्य है कि बिना सद्गुरु के आध्यात्मिक प्रगति संभव ही नहीं है | क्योंकि अध्यात्म का बीज ही नहीं है तो बीज की प्रगति का प्रश्न ही नहीं उठता है | और बीज मिलने के बाद वह अंकुरित ही हो यह भी आवश्यक नहीं है | आसपास का वातावरण और संगत इस पर प्रभाव डालती है |
यह सब एक जन्म में हो यह संभव ही नहीं है | यह तो आत्मा की क्रमबद्ध प्रगति से ही संभव है | एक जन्म में पुण्यकर्म घटित होते हैं , एक जन्म में शुद्ध इच्छा होती है , अगले जन्म में सद्गुरु मिलते हैं ,उसके अगले जन्म में सद्गुरु से अध्यात्म का बीज प्राप्त होता है | और उसके अगले जन्म में वातावरण प्राप्त होता है और उसके अगले जन्म में संगत प्राप्त होती है | और उसके अगले जन्म में प्रगति होती है और उसके अगले जन्म में एक शून्य की अवस्था प्राप्त होती है | और वही जन्म मनुष्य का आखिरी जन्म होता है क्योंकि मोक्ष की अवस्था उसी जन्म में प्राप्त हो जाती है |🌹🙏🏻
🍃हि.स.यो.५/२८ 🍃🕊
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