प्रत्येक मनुष्य के भीतर से ऊर्जा की तरंगे निकलती रहती है।

प्रत्येक मनुष्य के भीतर से ऊर्जा की तरंगे निकलती रहती है। और वह मनुष्य अपने विचारों से उसे अच्छे या खराब तरीके से प्रसारित करता रहता है। मनुष्य बता कुछ भी रहा हो या मौन भी हो , दोनों ही स्थितियों में ऊर्जा की तरंगें बहती ही रहती है। इन सब मनुष्यों की ऊर्जातरंगों के बीच रहना और अपने-आपको दूषित ऊर्जातरंगों से बचाना बड़ा ही कठिन कार्य है। इन दूषित विचारों की तरंगों के कारण ही समाज को कोयले की खदान कहते हैं।
समाज में सर्वत्र दूषित विचारों का ही कोयला पड़ा है। अब उनके बीच रहना और अपने सफेद कपड़े लेकर चलना तो बड़ा ही कठिन कार्य है।

*हिमालय का समर्पण योग २/८९*

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