🌹14. जय बाबास्वामी.🌹
"मनुष्य धर्म"...४.
३१. आत्मधर्म की जागृति परमात्मा की करुणा के बिना संभव नहीं है।
३२. आत्मधर्म जागृत होने पर ही 'आत्मग्यान' प्राप्त होने लग जाता है।
३३. 'आत्मग्यान' प्राप्त होने पर ही मनुष्य जीवन में आत्मशांति को प्राप्त होता है और आत्मशांति ही मनुष्य को आत्म-समाधान का सुख देती है।
३४. 'आत्मसमाधान' ही मनुष्य को 'आत्मबोध' कराता है। मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? मुझे कहा ँ जाना है ?
३५. मेरे जीवन के किस उद्देश्य से मैं जन्मा हूँ, मनुष्य-जन्म का सारा रहस्य पता लग जाता है।
३६. इसीलिए सभी धर्मो के मूलपुरुषों ने, संस्थापकों ने इस 'मनुष्यधर्म' को जागृत करने के प्रयास किए हैं।
३७. सभी धर्मो का सार एक ही है। अपने भीतर के मनुष्यधर्म को जगाओ।
३८. हिंसा को किसी धर्म में कोई स्थान नहीं है। क्योंकि यह हिंसा 'मनुष्यधर्म' के विरोध में है।
३९. 'हिंसा' तो मनुष्य के बुद्धि की ऊपज है। ह्रदय से तो हिंसा हो ही नहीं सकती। ह्रदय से केवल प्रेम हो सकता है।
४०. परमात्मा तक पहुँच ने का रास्ता कभी हिंसा का नहीं हो सकता। प्रेम के रास्ते से ही परमात्मा तक पहुँचा जा सकता है।
आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ३१-३२.
➰🙏🏻 *॥जय बाबा स्वामी॥* 🙏🏻➰
आप कितनी पूजापाठ करते हो , कितना कर्मकांड करते हो , उसको कोई मायना नहीं है। मायना है कि आपका चित्त कितने समय प्रभुचरण में रहता है , आपका चित्त कितने समय शून्य अवस्था में रहता है , कितने समय पवित्र अवस्था में रहता है ?
*मधुचैतन्य अप्रैल २००६/ ३५*
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➰🙏🏻 *॥जय बाबा स्वामी॥* 🙏🏻➰
मैं किसी भी मनुष्य की जीवन की सफलता के लिए यह देखता हूँ , उसके माँ-बाप उससे प्रसन्न है या नहीं क्योंकि वह उनकी निर्मिती है। अगर उसका 'निर्माता' ही उससे प्रसन्न न हो , तो उस जीवन की क्या सफलता!
*आत्मेश्वर/६४*
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🌹15. जय बाबास्वामी.🌹
"मनुष्य धर्म"...५.
४१. इसीलिए 'प्रेममय जयते' होता है।
४२. एक मनुष्य पहले अपने भीतर की 'मनुष्यता' को मारता है, तभी वह किसी अन्य मनुष्य को मार सकता है। इसमें दो मनुष्य मरते हैं। एक शरीर से मरता है, एक की मनुष्यता ही मरती है।
४३. इसीलिए विश्व के किसी भी धर्म में हिंसा को न कभी कोई स्थान रहा है, न रहेगा।
४४. मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए धर्म का दुरुपयोग करता है।
४५. इसीलिए यह हो रहा है क्योंकि धर्म, पुस्तक में सिमट कर रह गए हैं। पुस्तक के धर्म का अर्थ तो अपनी बुद्धि से अपने फायदे का लगाया जा सकता है।
४६. धर्म पुस्तकों में जो लिखा है, वह उस समय की आवश्यकता के अनुसार था। आज का धर्म अनुभूति पर आधारित होगा।
४७. वर्तमान परीस्थिति में वर्तमान का धर्म होगा, आज का धर्म होगा और आज का धर्म अनुभूति पर आधारित होगा।
४८. अनुभूति पर आधारित धर्म बराबर बताएगा - आज यह करना उचित है या नहीं।
४९. गलत कार्य अपने हाथ से होने ही नहीं देगा क्योंकि गलत कार्य करने की गलत ऊर्जा ही नहीं होगी, तो गलत कार्य कैसे होगा ?
५०. 'धर्म अनुभूति पर आधारित हो, 'चैतन्य' पर आधारित हो। चैतन्य सजीव ग्यान है, वर्तमान परिस्थिति में परमात्मा द्वारा किया गया मार्गदर्शन है।
आध्यात्मिक सत्य, पृष्ठ. ३३-३४.
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