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Showing posts from July, 2018

टाटा मुंबई मैराथन 2018

जय बाबा स्वामी🙏🏻 टाटा मुंबई मैराथन होगी - 20 जनवरी 2019 (Sunday ), सुबह मुंबई में. 🏃🏽‍♂🏃‍♀🏃‍♀🏃🏻‍♀🏃🏻‍♂🏃🏽‍♂🏃‍♀🏃🏽‍♂ इसमें अलग अलग रेस की जानकारी और registration dates नीचे दी गई है। रेस केटेगोरी                        42 km,    Registration date                29/7/2018 21km,   Registration date              2/8/2018 10km,                       Registration date 20/8/2018 6km dream run    Registration date 27/8/2018 senior citizen run Registration date  1/9/2018 disability run     Registration date 1/9/2018 आप नियत डेट पर ऑन लाइन लोग इन करके मुंबई मैराथन में सहभागी हो सकते हैं। Tatamumbaimarathon.procamrunning.in/race-categories Dreamrun के registration page पर हमारे समर्पण के साधक रक्षकों की वेशभूषा में दिखाई दे रहे हैं साथ में समर्पण के झंडे और पूज्य गुरुदेव की औरा रिपोर्ट की कॉपी भी दिखेगी। यह हमारे लिए बहुत खुशी की बात है। 🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻👏🏻👏🏻 ये वह रन है जिसमें हम समर्पण ध्यान योग का मस्ती के माहौल में प्रचार करतें हैं। तो अाइए और मौज मस

आप अकेले में आओ,तब मेरा एहसास होगा । बाबा स्वामी

आप अकेले तो कभी होते ही नहीं हो,मै सदैव आपके साथ ही रहता हूँ । सिर्फ आप अकेले में आओ,तब मेरा एहसास होगा । मै रोज प्रत्येक साधक के हृदय के दरवाजे पर जाकर नाॅक करता हुँ, बजाते रहता हूँ, लेकिन बहुत कम बार ऐसा होता है कि दरवाजा खुला मिलता है । साधक इतना बिझी रहता है, की उसको ध्यान ही नहीं रहता है । थोड़ा भीतर भी झाँका करो ना,थोड़ा अंदर भी देखा करो - अंदर क्या मूवमेंट हो रहे हैं,अंदर क्या अनुभूतियाँ हो रही हैं ? अंदर थोड़ी-सी भी अनुभूति कभी हो , सारे घंधे बंद करके शांत हो जाओ,एकांत मे चले जाओ । अनुभूति हो रही हैं मतलब स्वामीजी दरवाजा खटखटा रहे हैं । सबकुछ छोडके उस अनुभूति को पकडो । बहुत कम बार ऐसा होता है कि मैं आपके दरवाजे पर आया और दरवाजा खुला हुआ मिला, बहुत कम बार..! गुरुपूर्णिमा महोत्सव-2009 , पुष्कर (अजमेर)

मैं एक पवित्र आत्मा हूँ , मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ

आजकल  जो  मैं  आपको  बार -बार  ध्यान  कराते  समय  कह  रहा  हूँ  की  "मैं  एक  पवित्र   आत्मा  हूँ , मैं  एक  शुद्ध  आत्मा  हूँ , " ऐसा  तीन  बार  बोलो  तो  ध्यान  खुद -ब -खुद  लग  जाएगा । यह  बोलने  के  बाद  उन  लोगों  को  भी  ध्यान  लग  गया  जो  साधक  भी  नहीं  हैं । यानी  इसका  दायरा  कितना  बड़ा  हैं , ये  दायरा  कितना  विशाल  हैं , इसका  अनुमान  इस  बात  से  लग  सकता  हैं । औऱ  ये  क्यों  ध्यान  लग  गया ? इसका  थोड़ा  प्रोसेस  समझ  लो । कुछ  भी  सत्य  को , किसी  भी  सत्य  को  अगर  आप  त्रीबार  कहते  हैं , तीन  बार  बोलते  हैं  तो  उसमें  से  एक  ऊर्जा  निर्माण  होती  हैं  औऱ  वो  ऊर्जा  निर्माण  होके  वो  सारे  आसपास  के  वातावरण  को  प्रभावित  करती  हैं , प्रभावशाली  होती  हैं । तो  वही  सत्य  मैं  बोल  रहा  हूँ  औऱ  कुछ  नहीं । यह  सत्य  हैं  की  मैं  एक  पवित्र  आत्मा  हूँ , मैं  एक  शुद्ध  आत्मा  हूँ । ये  तीन  बार  बोलने  के  बाद  में  एक  एनर्जी  जनरेट  होती  हैं , एक  ऊर्जा  निर्माण  होती  हैं । वो  ऊर्जा  का  प्रभाव  ही  सारे  लोगों  के  ऊपर  पड़ता  हैं , फिर  वो  सा

नियमित   ध्यान  

जब   हम   नियमित   ध्यान   करते   हैं , साधना   करते   हैं   तो   ध्यान   करते -करते   हमारे   भीतर   की   जो   इन्द्रियाँ   हैं   वो   अपने   आप   वश   में   रहती   हैं   क्योंकी   हम   ध्यान   करते   हैं   तो   आत्मसंचालित   होते   हैं । जब   हम   आत्मसंचालित   होते   हैं तो   हमारे   भीतर   की   सारी   सृजनात्मक , सारी   सकारात्मक   शक्तियाँ   एक्टिवेट  [ क्रियाशील ]  होती   हैं । औऱ   जब   वो   क्रियाशील   होती   हैं , तो   हमारे   हाथ   से   केवल   सृजनात्मक   कार्य   ही   होते   हैं । परम वंदनीय पूज्या .. 🌹॥ गुरुमाँ ॥ 🌹 चैतन्य महोत्सव 💎 🌞  २०१५  🌞

गुरुपौर्णिमा

।। गुरुपुजन होने के पूर्व का स्वामीजी का सभी साधको के लिये संदेश ।। गुरुपुजन होने के पूर्व एक दो शब्द आपको केहने जा रहा हु। आप मे से कितने लोगो ने शिर्डी महाशिबिर अटेंड किया था ,हाथ उपर किजिये  करिब करीब सभी ने किया था । उसके अंदर  आपणे देखा होगा, उन लोगो ने कहा था की 3 - 3 घंटे का प्रवचन मत करना 2 घंटे करना क्योंकी  वह उसकी व्हिडीओ शिबिर करना उनको तकलीफ होती है। मैने उनको कहा  "तुम मेरा प्रवचन काट दोना, मेरे को कोई objection नहीं है ।" तो मैने भी बीच का रास्ता निकाला था, न 2 घंटे किया ,न 3 घंटे किया था 2.30 घंटे का कार्यक्रम किया था। और ये 2.30 घंटे का कार्यक्रम मे कंही भी प्रवचन के दौरान कभी खांसी नही आयीं।आपने मार्क किया कीं नही मालूम नही।कभी भी खांसी नही आयी, कभी पानी नहीं पिया, कभी भी रुका नही । दुसरा कभी भी एकांत मे आप उसकी DVD लगाकर देखो ,तो आपको ऐसा लगेगा प्रत्यक्ष आपसे ही बोल रहा हू। माने कंही पर भी मैने खुद्द ने ही चेक किया ना कंही पर भी ऐसा लग रहा था की प्रवचन नही कर रहा हूं या बलकी आपसे बाते कर रहा हू, एकदम वन टू वन बाते हो रही है, सामनेवाले से बात हो रही है।लेकि

गुरुपूर्णिमा 2018 का  स्वामीजी के प्रवचन के कुच अंश

गुरुपूर्णिमा में स्वामीजीने एक बात बताई की ..... ध्यान के समय मे मुजे खाँसी आती है वो आपने देखा कि नही मुजे मालूम नही लेकिन मेने जाना की आप लोग नियमित ध्यान नही करते... शिर्डी शिबिर open प्रोग्राम था वहाँ खाँसी आना स्वभाविक है लेकिन... *गुरुपूर्णिमा जेसा कार्यक्रम में खाँसी आये वो चिंतन करने की जरूरत है l* इसका मतलब आप नियमित ध्यान नही करते ये तो मेरे गुरुदेव ने विशुद्धि चक्र में ऐसा प्रोग्रामिंग किया हे कि कोई भी नेगेटिविटी भीतर आने नही देती उसे बहार फेंक देती है l ( गुरुपूर्णिमा 2018 का  स्वामीजी के प्रवचन के कुच अंश )

Guru Poornima Special... ✒

🌸 गुरु के शरीर से एक प्रक्रिया अविरत चलते रहती है, वह है शिष्य के चित्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया 🌸 शिष्य के चित्त की अशुद्धि गुरु सदैव ग्रहण करते ही रहते हैं 🌸 इसीलिए गुरु के शरीर में उस अशुद्धि के कारण गर्मी आ जाती है और वह गर्मी गुरु के पैरों के तलुवों में महसूस की जा सकती है 🌸 शिष्य के चित्त को शुद्ध करने में यह अनायास ही आ जाती है 🌸 इसीलिए शिष्य का कर्तव्य है कि उसके कारण आई हुई गर्मी व दोष दूर करने में वह अपने गुरु की सहायता करे 🌸 इसीलिए गुरुपूर्णिमा में गुरू के पादपूजन का कार्यक्रम किया जाता है 👣 🌸 गुरु ने सालभर तक जो शिष्य के चित्त को शुद्ध किया, उसका ऋण तो शिष्य अपने जीवन में कभी चुका नहीं सकता, लेकिन वह एक कृतज्ञता व्यक्त करने के भावस्वरूप पादपूजा करता है 👣 🌸 इसीलिए आध्यात्मिक क्षेत्र में गुरू की पादपूजा का बड़ा महत्त्व होता है हिमालय का समर्पण योग भाग-1 📕

लीपस्टीक

एकबार की घटना है।महात्मा गांन्धी के मृत्यु के बाद एक बार उनके पुत्र और बहु की फोटो पेपर मे छपी तो बहु के लिपस्टीक की काफी चचाे हुयी थी। लिपस्टीक उस जमाने भी सामान्य ही घटना थी पर वह महात्मा गांन्घी की बहु ने लगायी थी इसलीये चचाे हुयी ऐसा होता ही समाज के कीसी “आदशे” व्यक्ती के आसपास एक चौखट खींच जाती है।पर उसी चौखट मे आवश्यक नही की उसके परीवार के सभी सदस्य बैठे ही कुछ सदस्य नही भी बैठते है। लोग एक ही चौखट से सभी को देखते है।प्रत्येक मनुष्य केवल अपने पुवे जन्म के कमे भोगने के लिये की जन्म लेता पुवे जन्म के कमो से किसीको भी छुटकारा नही है । फिर वह मनुष्य कोई भी क्यो न हो। आप सभी को “गुरूपोणिमा” के पुवे सध्या पर खुब खुब आशिवाद यह गुरूपोणिमा आपके जिवन एक नयी आध्यात्मीक उंचाई लाये यही प्रभु से प्राथेना है।              आपका अपना             बाबा स्वामी             25/7/2018 🌺कच्छ समपेण आश्रम पुनडी.कच्छ

Lipstick

It happened once, that a picture of Mahatma Gandhi’s son and daughter-in-law got published in a newspaper after his death. And there was lot of gossip about the lipstick that his daughter-in- law wore in that picture. Now wearing lipstick was an ordinary thing even in those days yet it attracted gossip because it was worn by Mahatma Gandhi’s daughter-in-law. Such things happen, that a person who is considered as an ‘ideal’ by society has boundaries drawn around him. But it is not necessary that all his family members may fit into these boundaries. Some members may not, but people view everyone through the same boundary. Every person takes birth only to endure his/her karmas from his/her previous birth. Nobody can escape the karmas of their previous birth, no matter who that person is. Lots of blessings to all of you on the eve of Guru-Poornima. May this Guru-Poornima bring great spiritual heights to your life, these are my prayers to God.                          Your own         

समर्पण की दृष्टि

यदि हम समर्पण की दृष्टि से देखें , तब भी देह ये बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि देह क्या है? देह आत्मा का वाहन है। और आत्मा का ये वाहन जब तक अच्छा होगा , सही स्थिति में होगा , तभी तक हमें ढंग से बैठके ध्यान करने देगा। अन्यथा , बैठते समय भी हम कभी इधर लुढकेंगे , कभी उधर लुढकेंगे , बैठा नहीं जा रहा है , लेट जाएँगे और हमारा शरीर हमारा साथ नहीं देगा। तो शरीर बहुत महत्वपूर्ण है , आत्मा की प्रगति जितनी महत्वपूर्ण है , उतना ही महत्वपूर्ण हमारी ये देह है। क्योंकि वाहन के बिना क्या मोक्षप्राप्ति हो सकती है? हो सकती है? क्या देह के बिना मोक्षप्राप्ति हो सकती है? नहीं हो सकती! तो हमें जन्म से लेकरके मोक्ष तक - मृत्यु तक नहीं कह रही हूँ , मोक्ष तक इस देह की आवश्यकता है ही! और मोक्ष से लेके मृत्यु तक भी देह की आवश्यकता है ही!              ------ *पूज्या  गुरुमाँ* *मधुचैतन्य जनवरी २०१८* *॥आत्म देवो भव:॥*

Faithful Dog

Once I had this curiosity in my mind that why are ‘dogs’ found in the proximity of all places belonging to Gurus. My Gurudev laughed and said that actually a Satguru is like a 'faithful dog’. No matter how much his master shuns him or hits him, the ‘faithful dog’ will neither bite him nor think ill about him. The ‘Satguru’ is also the same. No matter how they treat him, but a Satguru will always do good for his sadhaks. Because doing good is his innate nature. This is why dogs gather around a Guru’s place. Circumstances ‘test’ the sadhak’s sense of surrender because a Satguru is beyond the sense of physicality (physical body). So circumstances do not affect Him. 🌺Leaving aside a few raw sadhaks all other sadhaks have meritoriously passed the test taken by circumstances. Congratulations to all of you. Lots of blessings to all of you!                    Your own                    Baba Swami 🌺 Kutch Samarpan Ashram, Punadi, Kutch                    24/7/2018

वफादार कुत्ता

एक बार मेरे मन मे जिज्ञासा हुयी की सभी गुरू स्थानो के सानीध्य मे” कुत्ते” क्यो होते है। मेरे गुरूदेव ने हंसते हुये कहॉ था की वास्तव सदगुरू एक “ वफादार कुत्ते” की तरह ही होता है। मालीक भले ही उसे कितना भी थुत्तकारे.कितना ही मारे “वफादार कुत्ता” कभी भी अपने मालीक को न काटता है। न कभी मालीक का बुरा चाहता है। ठीक इसी तरह “सदगुरू” भी होता सदगुरु के प्रती साधक का व्यवहार कैसा भी हो वह सदैव साधक का भला ही करेगॉ। क्योकी भला करना उसका स्वभाव हो गया है। इसलीये गुरूस्थानो के आसपास सदैव कुत्ते जमा हो जाते है। परीस्थीतीया भी साधको की समपेण की”परीक्षा” लेती है। क्योकी सदगुरू तो शरीर भाव से परे होता है। उसपर परिस्थीती का प्रभाव नही पडताहै। 🌺कुछ कच्चे साधको छोडकर प्रा:य सभी साधक परीस्थीती की ली गयी परीक्षा मे मेरीट मे पास हुये बधाई आप सभी को खुब खुब आशिेवाद               आपका अपना             बाबा स्वामी 🌺कच्छ समपेण आश्रम पुनडी कच्छ             24/7/2018

Gurupoornima 2018

|| Jai Baba Swami || Dear All, Gurupoornima 2018 event is coming closer and all of us are eagerly waiting for P. P. Swamiji to shower there blessings on all of us. The Gurupoornima Event schedule as well as the video broadcast link is now online on our official website. Please click the following link to visit our page. https://en.samarpanmeditation.org/main/event/9 Thanks & Regards Anurag https://youtu.be/0y-5hvvvMy8

गुरुकार्य

तीन दिन के सान्निध्य पे आज पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। क्यों? क्योंकि अभी गुरुकार्य में ही गुरु को अनुभव कर रहा हूँ। गुरुकार्य कर रहे है- गुरु के सान्निध्य में हैं , गुरु पास में है , गुरु मेरे पास में है , मैं गुरु के पास हूँ , क्योंकि मैं गुरुकार्य से जुड़ा हुआ हूँ। तो गुरुकार्य में ही गुरु का अनुभव कर रहे हैं। तो गुरु के सान्निध्य की आवश्यकता ही नहीं रही।             ----- *पूज्य स्वामीजी* *मधुचैतन्य जनवरी २०१८*

प्रगतिशील समाज की परिभाषा

अब तो प्रगतिशील समाज की परिभाषा ही यह हो जाएगी कि आप आपके कितने दरवाजे खोल पाते हो। हमने आसपास इतने सारे दरवाजे घर को बना रखे हैं , जो जब तक हम खोलते नहीं हैं , हमारी प्रगति कभी भी नहीं हो सकती है। प्रगति का मापदंड यही है। वह आप भौतिक जगत् मैं भौतिकता में सफलता के लिए देखो या आध्यात्मिक जगत् में आध्यत्मिक प्रगति के लिए देखो। आपका क्षेत्र कोई भी हो , आप अपने -आपको विकसित करो। हमारे शरीररूपी मकान के सब दरवाजे खुल जाएँगे और सूर्यप्रकाश जो आपके दरवाजे पर खड़ा दस्तक दे रहा है , वह सूर्यप्रकाश से आपका घर प्रकाशित हो जाएगा।आप  आपके दरवाजे खोलेंगे तो आपका ही घर प्रकाशित होगा। आपका घर है , आपके ही घर के दरवाजे हैं , वे आपने ही भीतर से बंद किए हैं तो वे आपको ही खोलना होंगे। सूर्य की अपनी एक सीमा है , भाग - ६ - २७३/२७४

संपूर्ण समाधान

संपूर्ण  समाधान  से  आशय  आत्मा  के समाधान  से  हैं । यह  समाधान  आपको  प्राप्त  हुआ  हैं  क्या ? आप  आपका  ही  आत्मचिंतन  करो । क्या  मुझे  संपूर्ण  समाधान  प्राप्त  हुआ  हैं ? या  अभी  भी  कोई  इच्छा  बाकी  हैं , यह  मिलना  चाहिए , वो  होना  चाहिए , यह  करना  चाहिए । अगर  ऐसी  इच्छाएँ  बाकी  हैं  तो  अभी  हम  शरीर  के  स्तर  के  ऊपर  जी  रहे  हैं । अगर  वो  सारी  इच्छाएँ  समाप्त  हो  गई  तो  आप  समझ  लो  आप  उस  मकाम  तक  पहुँच  गए  जो  गुरुपुर्णिमा  उत्सव  मनाने  के  लिए  निश्चित  किया  जाता  हैं । तो  आप  आपका  ही  अवलोकन  करो ! क्या  आपने  अपने  जीवनकाल  में  वो  संपूर्ण  समाधान  को  प्राप्त  कर  लिया  हैं ? दूसरा , संपूर्ण  समाधान  प्राप्त  हो  जाने  के  बाद  में  जीवन  में  पाने  के  लिए  कुछ  बचा  ही  नहीं  रहता  हैं । कुछ  भी  पाने  की  इच्छा  बाकी  नहीं  रहती । जो  कुछ  बचा  रहता  हैं  वह  जीवन  में  केवल  देना  ही  देना  हैं । वही  कार्य  आपके  हाथ  से  घटित  होगा । क्योंकि  जीवन  में  पाने  के  लिए  ही  कुछ  बाकी  नहीं  रह  गया । ऐसी  स्थिती  आपको  प्राप्त  हुई  हैं  क्या ?

मनुष्य समाज का विकास

हमारे मनुष्य समाज का विकास तभी संभव है , जब हम प्रकुतिमय हो जाएँ। हमको जो प्रकृति ने निर्माण किया है , वैसे ही हो जाएँ। प्रकृति की एक विशेषता है , वह सभी को समान बाँटती है। सूर्य भगवान सभी को प्रकाश देते हैं , सभी को समान रुप से देते हैं किसी को भी भेदभाव नहीं करते हैं। अब हवा है , वह भी सभी को समान उपलब्ध है , वह भी किसी को अधिक या किसी को कम प्राप्त नहीं होती है। पृथ्वी है वह सभी को वहन करती है , कोसी को यह नहीं कहती कि मैं तेरे वजन नहीं उठाएगी। भाग - ६ - २७२/२७३

सुबह का ध्यान

सुबह का ध्यान हमारी आध्यात्मिक प्रगति करता है या ये समजे की सुबह ध्यान करके हम शक्तीयाँ  प्राप्त करते है। और शाम को ध्यान करके हम शक्तीयाँ बाँटते है, शाम का ध्यान सामूहिकता में करेंगे तो आपके माध्यम से दान होगा और जो आपके हाथ से दान होगा, आपका वही वृद्धिगत होगा। आप अगर आम के पेड़ लगाओगे तो आम ही लगेंगे। आप जो पेड़ लगाओगे वही लगेगा। ये प्रकृति का नियम है। मनुष्य जो प्राप्त करता है, वह बाँटता नही है। HSY - 6 / 272

आत्मा का शरीर पर नियंत्रण

जो मनुष्य अपने ऊपर नियंत्रण कर पाता है, वही मनुष्य किसी के सामने झुक सकता है, किसी से मार्गदर्शन ग्रहण कर सकता है, किसी को गुरु मान सकता है | मेरा जीवन ही शायद इस बात के सबक के लिए हो कि जीवन में अपने ऊपर नियंत्रण जरूरी है | शरीर पर नियंत्रण सदैव उसकी आत्मा का होता है.. और शरीर से मेहनत हो सकती है, शरीर से कड़ा परिश्रम हो सकता है, पर शरीर से शरीर पर नियंत्रण नहीं हो सकता | शरीर शरीर पर नियंत्रण कर ही नहीं सकता है शरीर पर नियंत्रण के लिए कोई और उच्च होना चाहिए और वह 'उच्च' आत्मा है| प्रत्येक मनुष्य की आत्मा जितनी सशक्त होगी, नियंत्रण उतना ही अधिक हो पाएगा और शरीर जितना अधिक आत्मा के अधीन होगा, उतना ही नियंत्रण में होगा.. और एक स्वनियंत्रित शरीर सदैव सही मार्ग पर ही होगा ... श्री ️ शिवक्रुपानंद स्वामी      

आप अपने पूण्य कर्मों के कारण मेरे तक पहुंचे हो । - बाबा स्वामी

आप अपने पूण्य कर्मों के कारण मेरे तक पहुंचे हो । अब वे समाप्त हो गये है । अब फिर हम जीवन में फिर मिलेंगे या नहीं, इसलिए कहता हूं - अपनी आत्मा को ही गुरु बनाओ तो गुरु के रूप में मैं आपके भीतर ही रहुंगा । जब चाहो, तब आप मुझसे मिल सकते हो । मुझ तक पहुंचना बहुत बड़ा कठीण है क्योंकि मैं शरीर नहीं हु । मैंने शरीर धारण किया है । इसलिए आज पहुंच ही गए हो तो जीवन के इस रहस्य को जान लो और आत्मा के अधीन जीवन जीना प्रारंभ करो । यह सब एकदम नहीं होगा । यह कोई चमत्कार नहीं होगा । आज तो केवल मैंने आपके जीवन को एक नई दिशा दी है । अब अगर इसी दिशा से आप चले तो वहा अपने इसी जीवन में पहुंचोगे, जिस स्थिति को मुक्त अवस्था या 'मोक्ष' कहते हैं । मैंने तो आपको सही दिशा बताने का कार्य किया है। अब मेरा कार्य तो यहां समाप्त होता है। अब आज से आपका कार्य प्रारंभ होगा। बाबा स्वामी HSY - 6/48

आत्मचिंतन

मैं  साधकों  की "माँ " बना  पर  साधकों  का "गुरू " कभी  न  बन  सका  जबकि  मुझे "आत्मज्ञान " माँ " से  नहीं ,"गुरू "से  मिला  था । मनुष्य  मरते  दम  तक  अपनी "माँ " औऱ  "गुरू " दोनों  को  'कभी  नहीं  भूल ' सकता  क्यों  की  एक  'माँ ' शरीर  को  जन्म  देती  है  औऱ  एक  'माँ ' आत्मा  को  जन्म  देतीं  है । मेरे  'हृदय ' में  आने  का  ही  मार्ग  है , जाने  का  नहीं । आज  पता  चल  रहा  है , मेरे  सभी  गुरू  ऐसा  क्यों  कहते  थे , "तेरा  हन्डा  बहुत  बड़ा  है ।" जो  भी  इस  हृदयरूपी  हन्डे  में  आ  जाता  है , बस  वह  वही  का  होकर  रह  जाता  है । लाखों  आत्माओं  का , एक  आत्माओं  का  सागर  विद्यमान  है । ... परमपूज्य गुरुदेव

On 15th July France has won the World Cup

First one match was played and then there were some free days; then another match would be held, and again there would be some free days. This went on continuously and in the end the final match was held and France won it. There used to be some free days between every match, and during this free time the team would have theory classes - and there would be discussions on how the match should be played, what strategy should be followed. Then the match that was played would be like the practical of it. And this theory class was held by every team. But the final match was won by only that team which diligently followed what had been decided in the theory class. And the team which followed it sincerely won the finals. Just like the football team, when we leave our physical body, then a class is similarly held for our soul. Then, what we have done in our life and what we should have done is analysed. 🌺 And when we assume another physical body, then if we play the match of our life as dis

15 जुलाई को फ्रॉन्स ने फुटबॉल का विश्व कप जीता है।

पहले एक मैच हुआ फीर बीच मे छुट्टी थी फीर मैच होता था फीर बीच मे छुट्टी होती थी यह क्रम लगातार चलता रहा और अंन्त मे फायनल मैच हुआ और वह फ्रॉन्स ने जिता प्रत्येक दो मैच के बीच बीच मे छुट्टी रहती ही थी और इस छुट्टी के समय मे टिम की थ्योरी की क्लास चलती थी। और मैच कीस तरह खेला जाय क्या रणनीती अपनायी जाय इसपर चचाे होती थी । मैच तो प्रॉक्टीकल होता था । और यह थ्योरी का पाठशाला तो प्रत्येक टिम की होती ही थी। लेकीन फायनल मैच केवल उसी टिम ने जिता जो टिम थ्योरी की पाठशाला जो बाते फायनल की थी जो तय किया था।  वैसा ही कर पायी जो कर पाया वह जित गयी। फुटबॉल की टिम की तरह हम जब शरीर छोडते है।तब हमारे भी आत्मा की पाठशाला लगती है।और जिवन के मैच मे हमने क्या कीया और क्या करना चाहीये था।इसका अवलोकन होता है। 🌺 और फीर अब जो शरीर धारण कर जिवन की मैच खेलेगे अगर जो पाठशाला मे तय हुआ था।वैसा ही कर पाये तो ही मोक्ष रुपी जिवन का “ विश्वकप” जितेगे अन्यथा फीर आत्मारुपी परमात्मा की पाठशाला मे जाना होगा। हम जिवन मे एक उद्देश लेकर ही जन्मे है। बस उसे याद रहना चाहीये। आप सभी वह उद्देश “ गुरूपोणिमा”