अपनी आत्मा को छोड़कर अन्य कहीं समाधान की खोज करेंगे तो वह मुगतुष्णा ही होगी।
हम अपनी आत्मा को छोड़कर अन्य कहीं समाधान की खोज करेंगे तो वह मुगतुष्णा ही होगी। यानी इस स्थान पर पहुँचकर आपको एक आत्मीय समाधान की अनुभूति होती है। आत्मीय समाधान से आशय उस शाश्वत समाधान से है , जो सदैव रहता ही है। हमारे शरीर के स्तर का समाधान शाश्वत नहीं रहता है , क्योंकि शरीर उपभोग से जो समाधान प्राप्त करता है वह क्षणिक मात्र होता है , एक थोड़े समय का समाधान । वास्तव में , वह शरीर का भी समाधान नहीं होता ; शरीर रिलेक्सेशन ( आराम ) होता है। हम शरीर से और बुद्धि से इतनी मेहनत करते हैं और फिर थोड़ी भी दौड़ - भाग बंद हो जाए तो आराम लगता है , वह आराम है ; समाधान नहीं। अब मान लो , आपको खूब देर तक खूब दौड़ाया और फिर आपको कहा ठीक है , अब आराम करो , तो भी आपको शरीर के आराम से भी एक प्रकार का क्षणिक ही है। तो इस स्थान पर पहुँचकर आपको कुछ प्राप्त नहीं हो जाता और न कोई वस्तु मिल जाती है। यानी भौतिक रूप में कुछ भी नहीं घटता , लेकिन फिर भी आप एक भीतर ही भीतर से प्राप्त समाधान को अनुभव करते हैं। यह प्राप्त समाधान ही आपको एक नई आध्यात्मिक स्थिति प्रदान करता है। हमारे आत्मा की सबसे बड़ी इच्छा परमात्मा को पाना होती है और आत्मा का सबसे बड़ा समाधान भी परमात्मा को पाया , यही होता है। यह सबसे बड़ी आत्मा की इच्छा जब पूर्ण हो जाती है , तो आत्मा को एक पूर्ण समाधान की स्थिति प्राप्त हो जाती है।
भाग - ६ - २६४/२६५
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