वफादार कुत्ता

एक बार मेरे मन मे जिज्ञासा हुयी की
सभी गुरू स्थानो के सानीध्य मे” कुत्ते” क्यो होते है।
मेरे गुरूदेव ने हंसते हुये कहॉ था की
वास्तव सदगुरू एक “ वफादार कुत्ते”
की तरह ही होता है। मालीक भले ही उसे कितना भी थुत्तकारे.कितना ही
मारे “वफादार कुत्ता” कभी भी अपने
मालीक को न काटता है। न कभी मालीक का बुरा चाहता है।
ठीक इसी तरह “सदगुरू” भी होता
सदगुरु के प्रती साधक का व्यवहार
कैसा भी हो वह सदैव साधक का
भला ही करेगॉ। क्योकी भला करना
उसका स्वभाव हो गया है।
इसलीये गुरूस्थानो के आसपास सदैव कुत्ते जमा हो जाते है।
परीस्थीतीया भी साधको की समपेण
की”परीक्षा” लेती है। क्योकी सदगुरू तो शरीर भाव से परे होता है।
उसपर परिस्थीती का प्रभाव नही पडताहै।
🌺कुछ कच्चे साधको छोडकर प्रा:य
सभी साधक परीस्थीती की ली गयी
परीक्षा मे मेरीट मे पास हुये बधाई
आप सभी को खुब खुब आशिेवाद

              आपका अपना
            बाबा स्वामी
🌺कच्छ समपेण आश्रम पुनडी कच्छ
            24/7/2018

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