समुद्रमंथन
साधक के जीवन में साधना के प्रारंभ में कर्मों का झंझावात आता है । भूतकाल की खराब घटनाएँ , खराब व्यक्ति और खराब कर्म रूपी "विष " का पान शिव स्वरूप सदगुरु अपनी करुणामय स्वभाव से करते है और साधक के जीवन को विषमुक्त बनाते है । सदगुरु शिवजी के समान भोले होते है जो उदारता से शरणागत को . विषमुक्ति का वरदान देते है ।
डॉ .हेमांगिनि भट्ट
मधूचैतन्य
ज .फ .2016
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