गुरु अर्थात हमारी आत्मा
"गुरु" अर्थात हमारी आत्मा। और गुरुओं के गुरु अर्थात हमारे सतगुरु। गुरु के चरणों में समर्पित रहते हुए, सतगुरु के चरणों में संपूर्ण समर्पित होते हुए हमारा पतयेक क्षण जब बीतेगा तो जीवन का वो अंतिम क्षण हमें कभी बी पथभष्ट नहीं करेगा। हम कभी भी अपने पथ से भटकेंगे नहीं। मुख्य मार्ग पर तो हम हैं , कितु हमारे उस अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने का मांग केवल और केवल आत्मा को ही पता है, आत्मा ही जानती हैं, आत्मा को ही बठना है, आत्मा ही बढ रहि है, आत्मा ही बीतेगी, और उस अंतिम लक्ष्य को प्रप्त करेगी। आत्मा ही हमारी गुरु है। इस क्षण से हम केवल आत्मा बनके जिएंगे। केवल आत्मा बनके ही बठेगे।
मधुचेतन्य
2017
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