प्रगतिशील समाज की परिभाषा

अब तो प्रगतिशील समाज की परिभाषा ही यह हो जाएगी कि आप आपके कितने दरवाजे खोल पाते हो। हमने आसपास इतने सारे दरवाजे घर को बना रखे हैं , जो जब तक हम खोलते नहीं हैं , हमारी प्रगति कभी भी नहीं हो सकती है। प्रगति का मापदंड यही है। वह आप भौतिक जगत् मैं भौतिकता में सफलता के लिए देखो या आध्यात्मिक जगत् में आध्यत्मिक प्रगति के लिए देखो। आपका क्षेत्र कोई भी हो , आप अपने -आपको विकसित करो। हमारे शरीररूपी मकान के सब दरवाजे खुल जाएँगे और सूर्यप्रकाश जो आपके दरवाजे पर खड़ा दस्तक दे रहा है , वह सूर्यप्रकाश से आपका घर प्रकाशित हो जाएगा।आप  आपके दरवाजे खोलेंगे तो आपका ही घर प्रकाशित होगा। आपका घर है , आपके ही घर के दरवाजे हैं , वे आपने ही भीतर से बंद किए हैं तो वे आपको ही खोलना होंगे। सूर्य की अपनी एक सीमा है ,

भाग - ६ - २७३/२७४

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी