जब हम आज्ञाचक्र तक पहुँचते हैं

जब हम आज्ञाचक्र तक पहुँचते हैं , तो हमें एक दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है और उसी के कारण हमें हमारे भीतर का दिखने लग जाता है। हम हमारे चित्त में जिसे भी परमात्मा के माध्यम के रूप में स्वीकार किया रहता है या यूँ कहें कि हमने परमात्मा के जिस रूप को माना होता है , वही रूप हमको आज्ञाचक्र पर पहुँचकर दिखने लग जाता है। अगर कुछ भी रूप नहीं है तो आपको दिव्य ज्योति दिखाई देगी , या प्रकाशपुंज दिखाई देगा। यानी कुछ-न-कुछ दिखता अवश्य है। क्यों दिखता है ? क्योंकि आज्ञाचक्र में दिखने की प्रक्रिया होती है , आपकी आँखें बंद ही रहती हैं ,लेकिन आपके भीतर के प्रकाश में भीतर रखा हुआ परमात्मा के रूप के दर्शन होता है। लेकिन यह भी धोखा है , सत्य नहीं है , वही रूप दिखता है , जो हमने माना हुआ है और वास्तव में परमात्मा का एक ही स्वरूप है। हमने तो केवल रूप का मान्यता दी है , रूप माध्यम है लेकिन आज्ञाचक्र के प्रकाश के स्थान से निकलकर जब आप इस सहस्त्रार चक्र पर आते हैं तो दिखने की सारी प्रक्रिया ही बंद हो जाती है। और इस चक्र पर आने पर साधक को आनुभूतियाँ होना प्रारंभ हो जाती है।

भाग - ६ - २६१/२६२

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