आप जितना आत्मा के करीब जाओगे

और आप जितना आत्मा के करीब जाओगे , एक तो आत्मा उतनी ही सशक्त होती चली जाएगी। दूसरी ओर , आपका शरीर एकांत में आत्मा से मिल रहा है , वो आपका शरीर आपकी आत्मा के करीब आना प्रारंभ हो जाएगा। प्रत्येक मनुष्य की आत्मा अलग -अलग है। और प्रत्येक आत्मा का अपना एक शरीर है , लेकिन उस शरीर के पास जब दूसरा शरीर आ जाता है , तब आत्मा उतनी स्वतंत्र नहीं होती भले ही वे दो शरीर आपस में पति-पत्नी भी क्यों न हो। पति और पत्नी के शारिरिक संबंधों के कारण उनमें शारिरिक निकटता हो सकती है , लेकिन दोनों की ही   आत्मा अलग-अलग है और प्रत्येक आत्मा को विकसित होने के लिए खिली जगह की आवश्यकता होती है , वह अगर आत्मा को मिली तो वह विकसित होगी और नहीं मिली तो नहीं होगी , यह खाली जगह मिलना उन दोनों के लिए अच्छा है। अब यही समझ लो न , कि दो अलग-अलग पौधे हैं ,उन दोनों को अगर माली पास-पास लगा दे तो वह दोनों ही पौधे विकसित ही नहीं हो सकते , वे जीवंत रहेंगे लेकिन जीवित रहना और विकसित होना इसमें अंतर होता है। अब अगर माली इन्हीं पौधों को पाँच-पाँच फिट दूरी रखकर लगाए तो वह दूरी उन दोंनो ही पौधों विकसित होने का सामान अवसर देगी और दोनों ही पौधे अच्छे विकसित हो जाएँगे। ठीक इसी प्रकार से , हमारे आत्मा को भी विकसित होने के लिए एकांत कि आवश्यकता होती है।

भाग - ६ -२७०/२७१

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