पुण्यकर्मों से चित्तशुद्धि
पुण्यकर्मों से चित्तशुद्धि होती है। मैंने कहा , हाँ। पुण्यकर्मों से हमारा आशय उन कर्मों से है जिनके माध्यम से हम दूसरी आत्माओं की सेवा करते हैं। लेकिन नि:स्वार्थ भाव होना आवश्यक है क्योंकि नि:स्वार्थ भाव के साथ किया गया कार्य ही आत्मा तक पहुँचता है और आत्मा से परमात्मा तक पहुँचता है।
एक सदगुरु की सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है क्योंकि आप गुरुसेवा करके एक आत्मा से लाखों आत्माओं तक पहुँचते हैं। गुरुसेवा सर्वश्रेष्ठ पुण्यकर्म है , यह मैं मेरे अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ ।
सबसे बड़ा पुण्यकर्म गुरुकार्य और गुरुसेवा ही है
उन लाखों आत्माओं में आप स्वयं भी होते हैं ।
सदगुरु की सेवा करके हम अपने पापों का प्रायश्चित भी करते है
क्योंकि पापमुक्ति चित्तशुद्धि के लिए आवश्यक होती है । हि, स,यो,भाग ५
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