*क्या मैं मेरी आत्मा के साथ बात कर सकता हूँ ?
*क्या मैं मेरी आत्मा के साथ बात कर सकता हूँ ? यह कैसे संभव है ? यह कैसे हो सकता है ? ऐसा करने के लिए क्या साधना करनी होती है ? और क्या मेरी स्थिति ऐसी है जो यह साधना मैं कर पाऊँ* ? सुमा ने एक साथ इतने सारे प्रश्न पूछकर अपनी चुप्पी तोड़ी |. मैंने कहा, " हाँ , यह तो आसान है | उसके लिए कोई बड़ी साधना की आवश्यकता नहीं होती *बल्कि एक एहसास की आवश्यकता होती है कि मेरे भीतर एक पवित्र आत्मा निवास करती है और वह आत्मा परमात्मा का ही शुध्ध स्वरूप है|इस बात का एहसास कुछ दिन करो कि मैं यह नाशवान् शरीर नहीं हूँ, मैं एक पवित्र, शुध्ध आत्मा हूँ* | अगर हम प्रतिदिन यह एक एहसास ही करते हैं तो भी वह क्रियान्वित हो जाती है | हम मानने लग जाते हैं, हम उसे एक मान्यता देते हैं तो धीरे-धीरे हमारा शरीर उस आत्मा के अधीन होने लगता है और फिर शरीर पर उसका आधिपत्य होने लगता है और इस प्रकार हमारी आत्मा ही हमारी गुरु बन जाती है |आपको जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, क्या उचित है और क्या उचित नहीं है, इसका ग्यान होने लग जाता है | और जब हम हमारे जीवन में सभी निर्णय सही लेते हैं तो हमारा जीवन सरल और आसान हो जाता है |".
हि.स.यो-४ पृष्ठ-३८-३९
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