अनुभूति से जब मेरा जीवन परिवर्तित

         तो मुझे प्रश्न है एक अनुभूति से जब मेरा जीवन परिवर्तित हो सकता है , मेरा जीवन चेंज हो सकता है , तो आपका क्यों नहीं ?
          दुसरा , समरसता स्थापित होना , समरसता स्थापित होना ... । ये समरसता का आशय बाहरी मत लेना । हम क्या करते हैं , जो आसान है , जो सरल है , उसको बड़े आसानी से ग्रहण कर लेते हैं । मैने दाढ़ी बढाई , कल से आप भी दाढ़ी बढाना चालू कर दो । "  हँ $$  स्वामीजी दाढ़ीवाले , हम भी दाढ़ीवाले ।" समरसता स्थापित कर रहे हैं । सब बाबाजी इधर नजर आने लगेंगे । ऐसा मत करना । या हो सकता है , मैं ऐसे कपड़े पहनता हूँ , तुम भी कल ऐसे पहनके घूमने लग जाओ । क्या ,  समरसता स्थापित कर रहे है । या स्वामीजी जैसा बोलते हैं , वो बोलने की तुम नकल करने लग
जाना , ये समरसता शारीरिक स्तर पर हो गई । समरसता से मेरा आशय उस मित्र की आत्मा के साथ सान्निध्य प्राप्त करना , उस पवित्र आत्मा के साथ अपने-आपको जोड़ देना ताकि उस आत्मा की पवित्रता , उस आत्मा की सर्वमान्यता , उस आत्मा की समानता , उस आत्मा की शुध्दता , आपके भीतर भी वो विशेषताएँ उतरना प्रारंभ हो जाए । तो जब भी कभी माध्यम के शरीर के सान्निध्य में जाओ तो सदैव इस शरिर के पार झांकने की कोशिश करो। इस शरिर में ऐसी कौनसी आत्मा है जो आत्मा को लाखों लोगों के साथ जुड़ी हुयी है और लाखों लोग उस आत्मा के साथ जुडे़ हुए हैं । उस सामूहिकता को अनुभव करने का प्रयास करो । आत्मा की आत्मा के साथ समरसता स्थापित करो । अगर ऐसी समरसता स्थापित हो गई तो माध्यम के गुण , माध्यम की शक्तियॉ , माध्यम का  ज्ञान आपके भीतर भी धीरे-धीरे , धीरे-धीरे , धीरे-धीरे , धीरे-धीरे उतरना प्रारंभ हो जाएगा ।

मधुचैतन्य २०१४
गहन ध्यान अनुष्ठान - ' प. पू. स्वामीजी ' के प्रवचन से........

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