साधना

साधना सदैव सतत करने की आवश्यकता होती है , ठीक इसे भी सतत करने की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार से निसर्ग मनुष्य को आनंद सदैव ही निःशुल्क प्रदान करता है , ठीक इसी प्रकार से , यह ध्यान की पद्धति भी मनुष्य को निःशुल्क आत्मा का आनंद प्रदान करती है। जिस प्रकार से विश्व में कहीं भी जाओ , नैसर्गिक शक्तियाँ सदैव आपके साथ होती ही हैं। आप जहाँ भी ध्यान करते हैं , वहाँ आप स्वयं ही एक हवन कुंड बन जाते हैं। जिस प्रकार से हवन कुंड में यज्ञ करने से आसपास का वातावरण पवित्र और शुद्व हो जाता है , ठीक इसी प्रकार से , जब आप ध्यान करते हो तो आसपास ही हवा पतली हो जाती है और ऊपर की ओर उठना प्रारंभ हो जाती है। और उसका स्थान लेने के लिए आसपास ही हवा आना प्रारंभ हो जाती है। और अगर आसपास बादल हों तो वे बादल उस हवा के साथ खिंचकर आते हैं। इस प्रकार आसपास के वातावरण पर प्रभाव तब अधिक पड़ता है , जब या तो बड़ी संख्या के साथ ध्यान का कार्यक्रम किया जाए या कोई सद्गुरु रूपी माध्यम किसी एकांत में बैठकर ध्यान करे। क्योंकि सदगुरु के माध्यम के साथ लाखों आत्माओं का समूह सदैव जुड़ा ही होता है और यही कारण है कि एक अकेला माध्यम ही समूचे वातावरण को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि सद्गुरु के आसपास एक इलेक्ट्रॉ-मेग्नेटिक फील्ड ( विधुतचुंबकीय क्षेत्र ) का निर्माण स्वयं ही हो जाता है। सद्गुरु के आसपास ७ श्री क्षेत्र सदैव होते ही हैं और यह श्री क्षेत्र एक सर्कल पर दूसरा सर्कल ( एक गोलाकार पे दूसरा गोलाकार ) ऐसा सात होते हैं।

भाग - ६ -२५७

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