15 जुलाई को फ्रॉन्स ने फुटबॉल का विश्व कप जीता है।
पहले एक मैच हुआ फीर बीच मे छुट्टी थी फीर मैच होता था फीर बीच मे छुट्टी होती थी यह क्रम लगातार चलता रहा और अंन्त मे फायनल
मैच हुआ और वह फ्रॉन्स ने जिता
प्रत्येक दो मैच के बीच बीच मे छुट्टी रहती ही थी और इस छुट्टी के समय
मे टिम की थ्योरी की क्लास चलती थी। और मैच कीस तरह खेला जाय
क्या रणनीती अपनायी जाय इसपर
चचाे होती थी । मैच तो प्रॉक्टीकल
होता था । और यह थ्योरी का पाठशाला तो प्रत्येक टिम की होती ही थी। लेकीन फायनल मैच केवल
उसी टिम ने जिता जो टिम थ्योरी की पाठशाला जो बाते फायनल की थी
जो तय किया था। वैसा ही कर पायी
जो कर पाया वह जित गयी।
फुटबॉल की टिम की तरह हम जब
शरीर छोडते है।तब हमारे भी आत्मा की पाठशाला लगती है।और जिवन के मैच मे हमने क्या कीया और क्या करना चाहीये था।इसका अवलोकन
होता है।
🌺 और फीर अब जो शरीर धारण कर जिवन की मैच खेलेगे अगर जो
पाठशाला मे तय हुआ था।वैसा ही कर पाये तो ही मोक्ष रुपी जिवन का
“ विश्वकप” जितेगे अन्यथा फीर
आत्मारुपी परमात्मा की पाठशाला
मे जाना होगा।
हम जिवन मे एक उद्देश लेकर ही जन्मे है। बस उसे याद रहना चाहीये।
आप सभी वह उद्देश “ गुरूपोणिमा”
पवीत्र अवसर पर याद आये यही प्रभु से प्राथेन है। “गुरूपोणिमा” पुवे सध्या पर आप सभी को खुब खुब
आशिेवाद
आपका अपना
बाबा स्वामी
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