गूरूकार्य
* शारीरिक प्रयत्न से गुरूकृपा नहीं होती है । गुरूकृपा एक ईश्वरीय ऊर्जा है । वह आपके आत्मा के सुपात्र होने पर ही होती है ।
* गूरूकार्य किया तो जाना चाहिए शरीर से , पर वह अनुभव किया जाना चाहिए आत्मा के भाव से । आत्मा का संपूर्ण समर्पित भाव ही शरीर के द्वारा किए गए कार्य को आत्मिक कार्य बनाता है ।
* गूरूकार्य कर अपनी आत्मा की शुद्धि करते है औऱ आत्मा जैसे- जैसे शुद्ध होती जाती है , वैसे -वैसे वह सशक्त होती जाती है । औऱ सशक्त आत्मा ही गुरूकृपा के लिए सुपात्र होती जाती है । औऱ जब कोई आत्मा सुपात्र हो जाती है , तब उसपर ही गुरूकृपा बरसती है । आत्मा की पात्रता का गुरूकृपा के बरसने से सम्बंध होता है । इसलिए साधनारत साधक को सुपात्र होना चाहिए ।
पु .गुरुदेव .
ही.का.स.योग
भाग १
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