कुण्डलीनी शक्ति

आत्मा जब मनुष्यशरीर को धारण करती है तो उसके साथ-साथ 'कुण्डलिनी' नामक एक वैश्विक चेतना भी शरीर में आती है । इस शक्ति के आसपास कर्मों का आवरण होता है जिसमें मनुष्य के द्वारा किए गए अच्छे बुरे, दोनों कर्म होते हैं। जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है और गर्भ तीन माह का हो जाता है, तब आत्मा और कुण्डलिनी शक्ति बच्चे के तालूभाग से उसके शरीर में प्रवेश करती है। और तीन माह में शरीर के चक्र जिस प्रकार के होते हैं, उसी प्रकार चक्र इसकी ऊर्जा को ग्रहण कर पाते हैं और फिर वे क्रियान्वित हो जाते हैं। और इन चक्रों के विकसित होने में माँ के विचारों का योगदान रहता है ।                                 
माँ क्या सोचती है, के कैसे विचार करती है, के उस पर निर्भर करता है । किस गर्भ  में कौनसी आत्मा और कुण्डलिनी शक्ति' आएगी, यह तो तीन माह पूर्व माता और पिता के द्वारा किए गए संभोग के समय की उन दोनों की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति पर ही निर्भर होता है । और यह स्थिति बदलते रहती है । इसलिए दो भाई एक ही माता-पिता से पैदा होने पर भी अलग-अलग स्वभाव व विचारवाले होते है । यह शक्ति बच्चे के शरीर के मूलाधार चक्र के उपर जो त्रिकोणाकार स्थान होता है, वहाँ आकर बैठ जाती है । और इस चेतनाशक्ति से ही बच्चे के शरीर की सारी गतिविधियाँ चलती हैं । श्वास -प्रश्वास, हृदय का स्पंदन, नाड़ियो की गतिविधियाँ , सभी इसी शक्ति के कारण चलती रहती हैं । इसका नियंत्रण सारे शरीर पर होता है । और इस शक्ति की जागृति के साथ ही आत्मा जागृत हो सकती है । लेकिन इसके लिए आत्माओं की एक बड़ी सामूहिकता का होना आवश्यक है ।                       
-️HSY-4.Pg 102,103

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