आत्मा की बाती ध्यान से प्रकाशित रहती है

अंधकार  से  उषा  तक  का  सफर  आत्मा  के  प्रकाश  के  बिना  संभव  नही । आत्मा  की  बाती  ध्यान  से  प्रकाशित  रहती  है । ध्यान  के  लिए  वीचारशून्न्यता  की  अवस्था  आवश्यक  है  और  उसके  लिए  समस्त  भावों  का  समर्पण  आवश्यक  है । विचार  या  तो  भविष्य  की  चिंता  के  कारण  आते  है  या  भूतकाल  के  किए  कर्मों  के  कारण  आते  है । कर्म  जो  हमने  किए  और  वें  कर्म  जो  औरों  ने  हमारे  लिए  किए , वें  ही  विचारों  को  जन्म  देते  है । यदि  हम  अपने  द्वारा  किए  गए  सभी  कर्म  समर्पित  कर  सके  तथा  मन  की  सभी  भावों  को  समर्पित  कर  पाए  तभी  विचारशून्य  अवस्था  प्राप्त  हो  सकेगी । तभी  ध्यान  कर  पाएँगे  या  कहे  ध्यान  लगेगा । और  नियमित  ध्यान  से जीवन  की  उषा -संध्या  का  भेद  मिट  जाएगा ।...

गुरुमाँ
पुष्प  २/ ४६

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