मनुष्य भूतकाल के और भविष्यकाल के निरर्थक विचार कर अपने चित्त को कमज़ोर करते रहता है

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आध्यात्मिक  अनुभूति  अनुभव  करने  के  लिए  अतिसंवेदनशील  होने  की  आवश्यकता  होती  है । और  अतिसंवेदनशीलता  अतिसूक्ष्म  चित्त  होने  पर  ही  प्राप्त  होती  है । और  अतिसूक्ष्म  चित्त  निर्विचारिता  की  स्थिति  से  प्राप्त  होता  है । मनुष्य  भूतकाल  के  और  भविष्यकाल  के  निरर्थक  विचार  कर  अपने  चित्त  को  कमज़ोर  करते  रहता  है  और  इससे  मनुष्य  की  संवेदनशक्ति  कम  होती  जाती  है ।

- ही .का .स .योग १
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