गुरु एक ऐसा रहस्यमय सागर
गुरु ऐसो पयोधर है
अंधा सके न जान,
स्थूल पयोधि प्यासा रखे
तृप्ति है, आकाश का सूक्ष्म जलधाम!"
अर्थात्, गुरु एक ऐसा रहस्यमय सागर है, जिसको कोई अहंकार युक्त गर्व से अंधा मनुष्य समझ नहीं सकता।
गुरु का शरीर उस सागर समान है जो नीला तो है पर आपकी प्यास नहीं बुझा सकता,
लेकिन सूर्य रूपी चेतना शक्ति के माध्यम से अपने ही भीतर के उस रहस्यमय जल को पीने लायक बना देता है, जिससे ऊपर आकाश में भी एक और समुद्र जन्म लेता है, जो प्यासों पर बरसता है।
इसलिए गुरु के स्थूल से जुड़ना या उसे समझने का प्रयत्न करना अंधापन है, लेकिन उसकी सूक्ष्म चेतना से जुड़ना - जो हमारी प्यास बुझाती है, जो हमें आनंद देती है, हमारा यही आनंद ,गुरु के अस्तित्व को अर्थ देता है।
जैसे प्रकाश दीये में नहीं उसकी ज्योत में होता है, उसी प्रकार से गुरुकार्य भी कुछ करने में नहीं, हमारे अहंकार के अस्तित्व के खो जाने में है।
प्रश्न उठता है कि अहंकार रहित गुरुकार्य कैसे करें?
आज सुबह स्वामीजी ने समझाया कि जब एक व्यक्ति नियमित ध्यान के लिए और गुरुकार्य के लिए स्वयं को उपस्थित रखता है, उसकी ध्यान और गुरुकार्य के लिए उपस्थिति ही पर्याप्त है, उससे उसके बल से अधिक और बड़ा गुरुकार्य घड़ने के लिए। यहाँ नियमित उपस्थिति ही स्वयं को योग्य बनाती है। जब नियमित उपस्थिति होगी तभी तो एक दिन सागर से ऊंचा उठ आकाश के भीतर छिपे उस स्त्रोत के दर्शन कर सकेंगे।
अगर आपका ध्यान दूसरे व्यक्ति में है जो गुरुकार्य कर रहा है, उसके ईर्ष्या में है तो आपका ध्यान न सागर में है और न आकाश से हो रही चैतन्य वर्षा में है। ध्यान जब उस चैतन्य वर्षा की ओर होगा तब आप सिर्फ स्वच्छ ही नही होंगे आपकी स्वच्छता से आपके पास का विश्व प्रभावित होगा, और उसका ध्यान भी सागर से उठ कर आकाश से हो रही वर्षा की तरफ आएगा।
जैसे पृथ्वी पर सागर बहुत है लेकिन आकाश एक है, वैसे ही दुनिया में गुरु बहुत से होंगे लेकिन गुरुतत्व एक ही है, आप किसी भी सागर में उस तत्व के दर्शन कर सकते हैं, आकाश की वर्षा से अपनी प्यास बुझा सकते है। लेकिन विश्व में उस पानी की प्यास जगाना और उसको परमतृप्ति की अनुभूति हो ऐसा कठिन लेकिन अद्भुत गुरुकार्य, विश्वभर में हम सभी साधक कर रहें है।
आप सभी इस यात्रा में सम्मिलित हो सकते है, आपके प्रार्थना से, आपके उपस्थिति से या अपने अनुदान से, यह सारे तरीके उस सूक्ष्म से जुड़ने का सहारा है, इस पथ पर न प्रतियोगिता है और न ही कोई बंधन है, बस प्रेम है, और उसी प्रेम में आनंद है।
इस कठीन यात्रा में जो पड़ाव आएंगे...उस यात्रा को सुखपूर्वक सम्पन्न करने हेतु हमारे गुरुदेव ने सुंदर मार्गदर्शन दिया है। कृपया इस संदेश से आपसे जुड़े सभी साधकों को लाभान्वित करें।
आपका परम मित्र,
अअम्बरी
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