यह शरीर एक धर्मशाला जैसा है
यह शरीर एक धर्मशाला जैसा है जिसमें आत्मा कुछ समय व्यतीत करने के लिए आती है और बाद में अपने घर चली जाती है। और जो आत्मा पूर्णत्व को पाकर अपने घर जाती है, वह प्रसन्न रहती है क्यूँकि उसे मृत्यु का भय नहि लगता है। मृत्यु से वह ख़ुश होती है क्यूँकि उस आत्मा को उसके घर जाने को मिल रहा है।
-HSY1 pg 447
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