दोष देखना , न देखना सारा नजर का खेल है ।

एक  बार  निर्दोष  दृष्टि  प्राप्त  हो  गई , फिर  इस  दुनिया  के  दोषों  पर  चित्त  ही  नही  जाता  है । दोष  देखना , न  देखना  सारा  नजर  का  खेल  है ।
मानो , तो  आधा  ग्लास  पानी  से  भरा  है  और  ना  मानो , तो  आधा  ग्लास  पानी  से  खाली  है । आप  जिस  नजर  से  देखोगे , वैसा  दिखेगा । सारा  नजर  का  ही  खेल  है।

- आध्यात्मिक सत्य

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