हमारे भीतर द्वेषभाव नही है तो स्वाभाविक रूप से चित्त प्रसन्न रहेगा ।

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साक्षात  ईश्वर  भी  वरदान  देनेको  तयार  हो  तब  भी  मानव  तब - तक उसका  लाभ  प्राप्त  नही  कर  सकता  जब - तक  वह  वरदान  पाने  योग्य  न  हो । अर्थात  " यथा  स्थिति  तथा  परिस्थिती ।" जैसी  हमारी  चित्त  की  स्थिति  होगी  वैसी  ही  हमारे  आस - पास  की  परिस्थिती  होगी । यदि  हमारे  भीतर  द्वेषभाव  नही  है  तो  स्वाभाविक  रूप  से  चित्त  प्रसन्न  रहेगा ।

  - प्रेरक प्रसंग
    पूज्या गुरु माँ

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