दुनिया गोल है, जो दोगे, वही वापस मिलेगा
दुनिया गोल है, जो दोगे, वही वापस मिलेगा। सकारात्मक कार्य करना और नि:स्वार्थ भाव से करना आध्यात्मिक प्रगति स्वयं ही करा देता है। जिसके भीतर दूसरे के प्रति सदभावना होती है, जो सदैव दूसरों का भला ही चाहता है तो उसके हाथ से भला ही होता है। और जब दूसरों के प्रति ही सद सोचेगा तो उसके मन में लोभ की भावना तो कभी भी आ ही नहीं पायेगी। तो लोभ, मोह माया से भी बचा रहेगा।
-HSY 3 pg 350-351
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