पूजा का भी उद्देश वही है -- अंतर्मुख होना

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पूजा  शरीर  से  की  जानेवाली  वह  क्रिया  है  जो  हमको  अंतर्मुख  करती  है । यानी  पूजा  का  भी  उद्देश  वही  है -- अंतर्मुख  होना । और  अंतर्मुख  होके  कहीँ  जाना  है  क्या , कहीँ  खोजना  है  क्या , कहीँ  भटकना  है  क्या ? नही । जो  हमारे  भीतर  है , जो  हमारे  अंदर है  उसी  आत्मा  रूपी  शिव  तक  पहुँचने  का  है । वही  शिव  सत्य  है , वही  शिव  सुंदर  है ।
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महाशीवरात्री
    २०१४
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