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Showing posts from September, 2017

॥ आत्मा और देह ॥

दोनों  तुम्ही  हो ! एक  तुम  अर्थात  आत्मा  हो . . . तुम  ईश्वर  का  अंश  हो . . . प्रत्तेक  आत्मा  ईश्वर  का  अंश  होती  है । और  दूसरी  तुम  अर्थात  तुम्हारी  देह । यह  देह  आत्मा  का  साधन  होती  है । आत्मा  से  परमात्मा  तक  की  यात्रा  देह  रूपी  साधन  के  बिना संभव  नही । देह  अदभुत  साधन  है ।इसके  पास  क्षमताओ  का  विशाल  खजाना  है । देहके  पास  असीमित  क्षमताए  है । इन  क्षमताओ  का  कितना  उपयोग  होता  है . . . क्या  उपयोग  होता  है ? किसलिए  उपयोग  होता  है ? किस  तरह  उपयोग  होता  है ? ये  नियंत्रण  या  तो  आत्मा  करती  है  या  मस्तिक । जब  नियंत्रण  आत्मा  के  हातों  में  होता  है  तब  आत्मा  परमात्मा -सी  होती  है । यदि  नियंत्रण  मस्तिक  के  हातों  में  हो  तो  देह  की  भावनाओं  का  प्रभाव  विचारों  का  प्रभाव  देह  के  कार्यों  पर  पड़ता  है ।देह  में  सकारात्मक  और  नकारात्मक  दोनों  प्रकार  की  भावनाएं  होती  है ।  भावनाएं  विचारों  को  जन्म  देती  है । विचार  मस्तिक  को  प्रभावित  करते  है  और  विचारों  से  प्रभावित  मस्तिक  देह  से  कार्य  करवाता  है । आत्मा  मस्तिक 

पुण्यकर्म अपने ही चित्त के शुद्धिकरण का मार्ग

पुन्यकर्म  करना  एक  भावना  है  जिस  भावना  से  हम दूसरों  को  सुखी  कर  सुख  पाते  है । वास्तव  में  तो  पुण्यकर्म  अपने  ही  चित्त  के  शुद्धिकरण  का  मार्ग  है , हम  हमारे  ही  चित्त  को  शुद्ध  करते  रहते  है । ही .का .स .यो भाग ५ पृष्ठ २८ *  *  *

गूरूमय

गुरु  को  देख  रहे  है  यानी  अभी  गूरूमय  हुए  नही  है ।गूरूमय  होने  के  बाद  गुरु  दिखता  नही ,केवल  अनुभव  होता  है ।और  अनुभव  होता  है  केवल  चैतन्य ,चैतन्य ,चैतन्य !क्योंकि  सदगुरु  का  इससे  अलग  कोई  अस्तित्व  ही  नही  है ।इसलिए  हमे  गूरूमय  होना  होगा । ही .स .योग .2/150

चमत्कार

मनुष्य का पुर्ण समर्पण और परमत्मा की कृपा दोनो एकत्र हो जाएँ तो चमत्कार  घटीत हो जाता है | बाबा स्वामी  

आज हमारा नया जन्म हुवा है |

हर एक सुबह होती है तो हमारा नया जीवन होता है | आज हमारा नया जन्म हुवा  है | आज के दीन जो भी होगा वह बहोत अच्छे से हो | हर एक काम हमे  हर एक करम बहोत अच्छे से सावधानी बरखते हूए  करना होगा | जब रात होती है, तो यह हमारी आखरी रात होगी या हो सकती है यह सोच मन में डालके आराम से सोना चाहीए |   बाबा स्वामी "दिल्ली पार्लमेन्ट शिबीर"  

॥ " माँ " ॥

आपकी  माँ  आपको  जितना  जानती  है ,उतना  दुनिया  में  आपको  कोई  नही  जानता  क्योंकि  दुनिया  में  आने  के  नौ  माह  पूर्व  से  आपको  जानती  है ।ठीक  इसी  प्रकार  से  मै  आपके  आत्मा  की  माँ  हूँ ।आपकी  आत्मा  को  इस  जन्म  के  पूर्व  से  ही  जानती  हूँ ।आत्मा  का  साक्षातकार  जो  इस  जन्म  मे  मिला  है ,वह  इस  जन्म  के  कर्म  के  कारण  नही  मिला  है ।वह  आपकी  जन्मों -जन्मों  की  तपस्या  और  साधना  का  फल  है  जो  फल  प्राप्त  इस  जन्म  में  ही  हुआ  है । पूज्य स्वामीजी 12/2/2015     गुरुवार     

भगवान मानना आत्मा की ग्रहण करने की सर्वोच्च स्थिति है

मै  जीवन  मे  जो  आध्यात्मिक  प्रगति  कर  सका ,उसका  रहस्य  आज  आपको  बताता  हूँ ।मैने  अपने  गुरु  को  गुरु  नही ,भगवान  माना  है ।भगवान  मानना  आत्मा  की  ग्रहण  करने  की  सर्वोच्च  स्थिति  है ।अपने  गुरुओं  को  भगवान  मानने  से  मेरी  ग्रहण  करने  की  क्षमता  अधिक  बढ़  गई  और  मैने ,भगवान  को  प्राप्त  कर  लिया ,यह  आत्मिक  समाधान  भी  जीवन  मे  प्राप्त  हो  गया ।आध्यात्मिक  जीवन  मे  आत्मिक  समाधान  प्राप्त  होना  अत्यंत  आवश्यक  होता  है । बाबा स्वामी

॥ समर्पण ॥

समर्पण  एक  शब्द  में  सारे  जीवन  का  रहस्य  छुपा  हुआ  है ।अपने  जीवन  के  नियंत्रण  को  संपूर्णत: सदगुरु  के  माध्यम  से  परमात्मा  को  सौंप  देना  समर्पण  है । बाबा स्वामी

जन्म -मृत्यु तो हमारे हाथ मे नही है

जीवन की मृत्यु निश्चित है । सृजन का विसर्जन निश्चित है ॥ तो हे मानव !मत डर जग में । धीरज रख जी ले इस जग में ।। अर्थात :-- जन्म -मृत्यु  तो  हमारे  हाथ  मे  नही  है ।हाँ , जीवन  हमारे  हातो  में  है , तो  इस  जीवन  मे  नकारात्मक  विचार  तथा  भय  जैसी  भावनाओं  को  स्थान  क्यों  दे ? क्यों  न  हम  ईश्वर  के  प्रति  पूर्ण  आस्थावान  बने  तथा  गुरु  के  प्रति  पूर्ण  समर्पित  रहे । "मेरा  बुरा  कूछ  हो  ही  नही  सकता " --ऐसा  पूर्ण  विश्वास  रखे । आपकी - गुरुमाँ

स्वामीजी एक ऐसे अनमोल पत्थर के समान है

स्वामीजी  एक  ऐसे  अनमोल  पत्थर  के  समान  है  जिस  पत्थर  से  जो  भी  माँगे ,वह  इच्छा  पूर्ण  होती  है ।किंतु  इस  पत्थर  का  उपयोग  जितना  होगा , उतना  यह  पत्थर  घिसता  जाएगा ।इसलिए  इसका  उपयोग  केवल  अध्यात्म  के  लिए  होना  चाहिए ।. . . वंदनीय गुरुमाँ

करताभाव

जब  तक  मै  के  करता  भाव  से  आप  बाहर  नही  निकलते ,समर्पण  ध्यान  मे  प्रगति  असंभव  है ,आप  आपका  समय  व्यर्थ  गँवा  रहे  है ।एक  म्यान  में  दो  तलवारें  नही  रह  सकती ,वैसे  ही  कर्ताभाव  और  समर्पण  दोनो  एकसाथ  नही  होता ।क्योंकि  संपूर्ण  समर्पण  कर  दिया  तो  आपका  करताभाव   कैसे  रह  सकता   है ?. . . बाबा स्वामी

सदगुरु माध्यममात्र है

सदगुरु  माध्यममात्र  है  वह  किसीको  कूछ  नही  दे  सकता  है ।बस  उसके  सानिध्य  मे  हमे  पा  लेना  पड़ता  है । बाबा स्वामी

ध्यानयोग

समाज  मे  रहकर  संतुलित  बनने  का  एक  ही  मार्ग  है -- " ध्यानयोग " यही  मनुष्य  को  संतुलित  कर  सकता  है  और  आछी  आत्माओं  से  आपको  जोड़  सकता  है । बाबा स्वामी

लाखों आत्माओं की सामूहिकता

" वे आत्माएँ स्वयं ही तुम्हें पहचान लेंगी।उन्हें तुम दर्शनमात्र से हीअपने-से लगने लग जाओगे। वे केवल तुम्हारे दर्शन से आत्मसमाधान को प्राप्त करेंगी क्योंकि तुम्हारा शरीर ही इतने सारे गुरुओं का अधिकृत माध्यम है और अधिकृत माध्यम अत्यंत प्रभावशील होता है।तुम्हारे साथ लाखों आत्माओं की सामूहिकता स्पष्ट-स्पष्ट दिख रही है यानी समाज की लाखों आत्माएँ तुमसे जुड़ने वाली हैं।लेकिन वे यहाँ नहींआ सकतीं, तुम्हें ही समाज में जाना होगा। यह कार्य विश्वस्तर का है,वह यहाँ से नहीं हो सकता है।" " वास्तव में यह सब तुम्हारा कार्य नहीं है,इसलिए इस कार्य के बारे में तुम्हें सोचना ही नहीं है। यह कार्य तो गुरुशक्तियों का है,तुम तो एक माध्यम हो।देखो और आंनद लो!गुरूशक्तियाँ कैसे काम करती हैं, देखों!तुम्हें भी माध्यम बनकर आनंद आएगा।जो जन्मों से बिछड़े हुए हैं,वे सभी इस जन्म में मिलने वाले हैं क्योंकि सभी का यह आखरी जन्म होगा। और वे लोग तब तक प्रतीक्षारत रहेंगे,जब तक तुम समाज में नहीं जाओगे।और भीतर संग्रहित इतनी शक्तियों का तुम करोगे क्या?तुम्हें तो उनकी आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी आवश्यकता से इतनी अधिक

॥ चैतन्य ॥

माध्यम  का  शरीर  तो  सामान्य  मनुष्य  जैसा  ही  होता  है ,लेकिन  उस  शरीर  के  भीतर  की  आत्मा  परमात्मामय  होती  है । इसी  कारण  उस  आत्मा  से  लाखों  आत्माएँ  जुड़ी  होती  है , लाखों  आत्माओंसे  वह  जुड़ी  होती  है ।इसी  कारण  परमात्मा  की  शक्ति  चैतन्य  के  रुप  से  उसके  शरीर  से  बहती  ही  रहती  है ।इसलिए  उसके  सानिध्य  मे  अछा  लगता  है । परम पूज्य बाबा स्वामी

करुणा

करुणा होना , न होना, मनुष्य की ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर होता है। क्यूँकि किसी सदगुरु की करुणा को प्रयत्न से प्राप्त नहि किया जा सकता है। करुणा तो करुणा है, करुणा बस स्वयं ही हो जाती है। HSY 1 pg 240

माँ

प्रत्येक मनुष्य का सबसे पुराना रिश्ता माँ के साथ का ही होता है। HSY 4 pg 363

सहस्त्रार  चक्र 

सहस्त्रार  चक्र  पर  स्थिरता  सामूहिकता  में  ही  प्राप्त  की  जा  सकती  है ।और  सामूहिकता  के  लिए  " गुरुशक्तियों  को  समर्पण " आसान  मार्ग  है । . . . . . . . . बाबा स्वामी

आध्यात्मीक गुरू तीन चरण

पहला: अपने गुरूसे ज्ञान प्राप्त करना | दूसरा: उसका अध्ययन करना और अध्ययन करके स्वंय उस सजीव ज्ञान की अनुभूती को प्राप्त करना | तीसरा: उस अनुभूती के अनुभव को बाँटना | ये जो तीनों कार्य करते है, वे "आध्यात्मीक गुरू "  कहलाते है |                             हि.स.यो.                      भा. १            

आत्मा  को  गुरु  बनाओ 

उस  एहसास  को  अनुभव  करो ।तो  शरीर  से  आप  किसके  संग  हो ,उससे  कोई  फर्क  नही  पड़ता  है । मै  यह  सब  कह  रहा  हूँ ,इसलिए  इस  पर  विश्वास  मत  रखो ।आप  स्वयं  अनुभव  करके  देखो ।केवल  गुरु  ने  कहा  है ,इसलिए  विश्वास  करना या  परंपरा  से  ऐसा  ही  है ,ऐसा  विश्वास  करना  कभी  शाश्वत  स्वरूप  का  नही  होता । आप  केवल  अपने  आत्मा  को  गुरु  बनाओ  और  वह  क्या  अनुभूति  कर  रहा  है ,वह  देखो  और  उसी  आत्मा  पर  विश्वास  करो ।       बाबा स्वामी 26 जनवरी 2012

आत्मसाक्षात्कार के बाद वे जान जाएँगी कि वे कौन हैं

मैं अपने विचारों में,अकेले ही बड़े महाराजश्री की समाधि के पास , पहाड़ी के एक सिरे पर बैठा था। नीचे का सब दिख रहा था। उतने में डाक्टर बाबा कब आ गए, मुझे पता भी नहीं चला। वे आकर मेरे पास बैठ गए और बड़े स्नेह से मेरी पीठ को थपथपाया तो मुझे एहसास हुआ कि वे आकर बैठ गए थे। मैंने उन्हें नमस्कार किया।   वे बोले," गुरुदेव,किस सोच में डूबे हो?यह सारा संसार तुम्ही को चलना है क्या?यह पहाड़ इतनी पवित्र है,इतनी संवेदनशील है कि यहाँ कोई भी विचार किसी को भी आए तो वह सभी को पता चल जाता है। मैं पहाड़ी के उस कोने में,अपनी गुफा में था,फिरभी तुम्हारा विचार मुझे वहाँ बैठे-बैठे ही पता चल गया। तुम बेकार की बातें सोच रहे हो। जब समाज में जा ओगे तो ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि तुमने जन्मों -जन्मों से अपने शिष्यों को आश्वासन दिया है--मोक्ष का मार्ग जब भी मुझे मिलेगा,वह मार्ग बताने के लिए मैं तुम्हारे जीवन में अवश्य आऊँगा।और वे सभी आत्माएँ प्रतीक्षारत हैं और अब उनका भी समय आ गया है कि उन्हें भी वह मार्ग मिले। तुम्हारे इन आश्वासनों के कारण ,तुम्हारी इस देने की इच्छा के कारण ही इतने गुरुओं ने तुम्हें अपना माध्यम बना

शरीरधारी परमात्मा

शरीरधारी  परमात्मा  को   भले  ही  न  पहचाने , आत्मा  पहचानती  है । की  परमात्मा  देखने  की  नही , अनुभूति  लेने  के  लिए  होता  है । ✍. . . . . बाबा स्वामी

" सदगूरू " को मानना

" सदगूरू " को  मानना  ही  एक  सकारात्मकता  की  ओर  पहला  क़दम  है ।यानि  अपने  ही  जैसे  मनुष्य  के  भीतर  की  "आत्मा " को  देखना  और  उस  "पवित्र आत्मा " के  चैतन्य  की  अनुभूति  करना । बाबा स्वामी

संत कबीर

संत कबीर ने बड़ा सूंदर कहा है। उन्होंने कहा - जब मैं परमात्मा को खोजने को निकला , खूब खोजा, खूब ढूंढा , कहीं पे भी नहीं मिला। लेकिन जब मैं अपने आपको खोया , तब मुजे परमात्मा की प्राप्ति हुई , मुझे परमात्मा का अनुभव हुआ। ठीक उसी प्रकार से , जब तक आप आपके अहंकार को खोते नहीं हैं , आपके मैं  के भाव को खोते नहीं , तब एक परमात्मा की प्राप्ति , परमात्मा का अनुभव कभी नहीं हो सकता मधुचेतन्य 2016

शिव  और  शक्ति  इन  दोनों  के  बिच  ही  जीवन  है ।

शिव   और  शक्ति  इन  दोनों  के  बिच  ही  जीवन  है ।शिव  यानि  मनुष्य  के  शरीर  का  आत्मा ।उस  आत्मा  का  प्रभुत्व  शरीर  पर  कितना  है ,वह  आत्मा  शरीर  के  अधीन  है  या  शरीर  आत्मा  के  अधीन  है ,इसी  बात  पर  सारा  संतुलन  निर्भर  होता  है ।अगर  मनुष्य  का  शरीर  आत्मा  के  अधीन  है ,,इसका  अर्थ  है  की आत्मा  अपने  मूलस्वरूप  मे  है ,पवित्र  है ।और  आत्मा  पवित्र  है  तो  चित्त   भी  पवित्र  होगा  क्योंकि  चित्त  तो  आत्मा  का  ही  प्रकाश  है ।तो  ऐसे  मनुष्य  का  जीवन  संतुलित  होगा ,सुरक्षित  होगा । पूज्य गुरुमाउली ही .स .योग . . . 2/214. . . . . .

सदगुरु आपके र्हदय के द्वार पर खड़ा है

सदगुरु  आपके  र्हदय  के  द्वार  पर  खड़ा  है ।बस  आपका  र्हदय  का  द्वार  खोलकर  अनुभव  करो ।सारा  आपका  ध्यान  आपको  क्या  दिख  रहा  है ,उधर  नही ,क्या  अनुभव  हो  रहा  है ,उधर  होना  चाहिए ।क्योंकि  जो  दिखता  है ,वह  स्थाई  नही  है ,शाश्वत  नही  है । बाबा स्वामी

सूक्ष्म शरीर

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ऐसा अनुभव मेरे लिए एकदम नया था ।. . . एक सूक्ष्म शरीर जो गुरुसानिध्य मे ष्यानस्त था ।. . . और एक स्थूल रुप मे मेरे साथ . . . अब मेरा गुरुदेव से सीधा संपर्क नही था ,जो संपर्क था वह सूक्ष्म शरीर के माध्यम से हो रहा था ।. . . ✍. . . . . बाबा स्वामी =========================

आत्मज्ञान का फल

आत्मज्ञान का फल मनुष्य ने चखा नहीं है | वह भूखा है | मिट्टी ही खा रहा है और उसे ही फल समझ रहा है | इतना अज्ञानी है | मनुष्य अपनी अज्ञानता के कारण पुस्तक से प्राप्त जानकारी को ही ज्ञान समझ रहा है क्योंकि ज्ञान की अनुभूति उसने कभी की ही नहीं है | वह नहीं जानता है कि ज्ञान की एक अनुभूति है जो निर्जीव पुस्तकों से प्राप्त नहीं हो सकती है | पुस्तक का ज्ञान केवल जानकारी मात्र है | जो हो चुका है, उसकी जानकारी | जानकारी कभी अनुभूति नहीं करा सकती | अनुभूति एक सजीव ज्ञान है | जब तुम सजीव हो ,तो एक निर्जीव पुस्तक तुमको सजीव ज्ञान कैसे दे सकती है | जैसे मान लें , तुमने गाय के ऊपर लिखी हुई एक पुस्तक पढ़ी ,तो उस पुस्तक में गाय की जानकारी होगी | गाय के चार पैर , एक पूंछ ,दो सींग होते है | गाय दूध देती है | दूध स्वास्थ्यवर्धक है | दूध सफ़ेद रंग का है आदि | ये सब गाय की जानकारी मात्र है | पर पुस्तक गाय क दूध की अनुभूति नहीं करा सकती | दूध पीना है तो जीवंत गाय का होना आवश्यक है ,तो ही उस दूध को अनुभव कर सकते हो | ठीक वैसे ही पुस्तकों में परमात्मा की जानकारी मात्र है , परमात्मा की अनुभूति नहीं | अनुभूति कर

गुरू गहरे कुएँ जैसे होते है

ये गुरू गहरे कुएँ जैसे होते है | अगर आपको' ' प्यास लगी है और आपको पानी चाहीए तो 'आपको' ही रस्सी और बाल्टी लेकर उस गहरे कुएँ से पानी निकालना होगा और पानी पीना होगा | और प्रयत्न नहीं किया तो पानी दिखेगा पर मिलेगा नहीं |इस मार्ग में साधक की इच्छाशक्ति ही महत्वपूर्ण होती है | आपकी कितनी तीव्र इच्छा है, वह महत्वपूर्ण होता है | ये गुरू अपने ही मस्ति में मस्त रहते हैं |            हि.स.यो. ४/२३८

आत्म-अनुभूति जाती,धर्म,देश,रंग,लिंग इन सब भेदों से परे है।

हो सकता है,कुछ लोग अपने पुराने संस्कारों से,अपने बाहरी धर्म से , अपनी मान्यताओं से ही चिपके रहें और यह नई बात ग्रहण न भी करें क्योंकि आत्म-अनुभूति का समाज में अनुभव नहीं है। और प्रत्येक मनुष्य किसी -न-किसी पंथ से ,किसी-न-किसी धर्म से जुड़ा ही हुआ है। उसका अपना एक विश्वास है,उसका अपना एक धर्म है।प्रत्येक की अपना एक मान्यता है। सब कुछ- न -कुछ पकड़े हुए ही हैं। कई कार्य वह धर्म के नाम पर कर रहा है। कई जगह स्वार्थ के लिए धर्म का उपयोग कर रहा है। जो उसे खाना है,उसी का प्रसाद चढ़ा रहा है और भगवान के नाम पर खा रहा है। समाज में धर्मों की ,गुरुओं की भरमार है। ऐसी भीड़ में जो सुनने को खाली ही नहीं है, उस समाज में जाना,जो आस्तिक हो,भले ही उसकी आस्था अनुभूति पर आधारित न हो,ऐसे समाज में जाना,और आत्मसाक्षात्कार की बात कराना विचित्र तो होगा।हो सकता है,लोग इस नए प्रयोग के लिए  तैयार ही न हों।वातावरण तो निराशाजनक है। लेकिन ऐसे ही समाज में गुरु आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति कराना चाहते हैं यानी समाज में जो चल रहा है,यह अनुभव उससे भी ऊपर का होगा,तभी तो इसे लेने के लिए लोग तैयार होंगे।और यह आत्म-अनुभूति जाती,धर्

गुरु-सान्निध्य

मनुष्य जीवन में सबकुछ अपने प्रयत्न से प्राप्त कर सकता है, बस एक गुरु-सान्निध्य ही है जो प्रयत्न से प्राप्त नहीं होता है । गुरु-सान्निध्य केवल गुरुकृपा में ही प्राप्त होता है और गुरुकृपा कभी प्रयत्नों से नहीं होती है । हिमालय का समर्पण योग - १ पृष्ठ - १७०

शिरडी महाशिबिर —2018

ऐसा महाशिबिर आजतक न हुआ है और न भविष्य मे होगा । 18/9/2018 से 25/9/2018 मे शिर्डी मे होने वाला महशिबिर सीधा गुरूशक्तियो का आयोजन है। यह एक ईश्वरिय कलाकृती है ।एक मूर्तिकार के माध्यम से परमात्मा स्वयं अपने आप को घड लेता है। तब ऐसी मूर्ति निर्माण होती है ।जो अद्वितीय होती है । ऐसी मूर्ति न कभी उसने बनायी थी और न कभी फीर वैसी बना पायेगा। बस यह घटना भी ऐसी ही होगी बस इस घटना के साक्षी बने और क्या आप सभी इसके साक्षी बने यही परमात्मा से प्रार्थना है।                   बाबा स्वामी 28/9/2017

हे परमात्मा , तेरी माया भी निराली है

हे  परमात्मा , तेरी  माया  भी  निराली  है ।तू  यह  माया  का  खेल  खेलते  रहता  है ।तेरी  माया  को  अज्ञानी  लोग  समझ  नही  पाते  है  और  वे  बेकार  मे  ही  अटक  जाते  है ।एक  अटकता  है --"मैने " दान  दिया  यानी  इस  अज्ञान  के  कारण  अपने  "मै " पर  अटक  गया ।और  दूसरा ,जो  दान  या  भेट  प्राप्त  करता  है ,वह  अटक  जाता  है  की  "मै " इतना  अछा  हूँ  की  इसीलिए  "मुझे " ही  दिया ।यानी  ये  दोनों  ही  नाहक  भटक  जाते  है ।देनेवाली  शक्ति  भी  तू  ही  है  और  पानेवाली  शक्ति  भी  तू  ही  है ।लोग  तुझे  ही  तेरा  वापस  करते  है ।मै  सब  समझ  गया  हूँ ,अब  मैं  तेरी  सब  माया  जान  गया  हूँ  की  तू  ही  तू  है ,यहाँ  "मै " हूँ  ही  नही । बाबा स्वामी . . . . . ही .स .योग 2/192

ईश्वरप्राप्ति  के  अनेक  मार्ग  है ।

ईश्वरप्राप्ति  के  अनेक  मार्ग  है ।उनमे  ही  एक  मार्ग "समर्पण  ध्यानयोग " है ।इस  मार्ग  के  कूछ  सिद्धांत  है  और  इन्ही  सिद्धान्तों  पर यह  पद्धति  आधारित  है ।पहला  सिद्धांत --परमात्मा  सर्वत्र  व्याप्त  विश्वव्यापी  शक्ति  है । दूसरा --सदगुरु  इस  विश्वव्यापी  शक्ति  का  माध्यम  है ।तीसरा --विश्व  मे  एक  ही  धर्म  है -मानव  धर्म  और  चौथा -अहिंसा  ही  सत्य  धर्म  है  और  पाँचवा -परमात्मा  के  प्रति  अपना  पूर्ण  समर्पण  ही  मोक्ष  है ।इन्ही  सिद्धांतों  पर  यह  पद्धति  आधारित  है । ही .स .योग 2/180

गुरु के दो सिरे है

गुरु  के  दो  सिरे  है , एक  अस्तीत्ववाला और दूसरा  अस्तित्वहीन । हम  अस्तीत्ववाले  सिरे  को  पकड़कर  अस्तीत्ववीहीन  सिरे  तक  की  यात्रा  करते  है ।इसी  यात्रा  का  नाम  गुरु  है ।गुरु  कोई  व्यक्ति  नही  है ,वह  हमारे  और  परमात्मा  के  बिच  का  पुल  है ।पुल  परमात्मा  नही  है ।पुल  अलग  है  और  परमात्मा  अलग  है ।पर  बिना  पुल  के  परमात्मा  तक  पहुँचा  नही  जा  सकता  है ।हमे  अगर  परमात्मा  तक  पहुँचना  है ,तो  हमे  पुल  का  अवलंब  करना  ही  होगा  और  परमात्मा  तक  पहुँचने  के  लिए  पुल  के  ऊपर  से  जाना  होगा ।अपने -आपको  पुल  को  समर्पित  करना  होगा । ही .स .योग .2/148

मेरे चैतन्य को अपने पास अनुभव करो

मेरे  चैतन्य  को  अपने  पास  अनुभव  करो  तो   सब  बातों  से  आपको मुक्ति  मिल  जाएगी ।या  तो  तैर  कर  जीवन  की  नदी  पार  करो ,या "समर्पण ध्यान "की  नाव  से  करो ।पर  नाव  पर  बैठना  हो  तो  नाव  के  नाविक  पर  संपूर्ण  विश्वास  और  श्रद्धा  रखनी  होगी ।अब  आपकी  आप  जानो ।मुझे  बताना  था ,बता  दिया । बाबा स्वामी

मनुष्य

*सारे मनुष्य उस परमात्मा के बच्चे हैं। *परमात्मा एक शक्ति है जिसने मनुष्य को जन्म दिया है। *मनुष्य के माँ-बाप तो निमित्त हैं उसे शरीर, केवल शरीर प्रदान करने में। *वास्तव में मनुष्य की माँ और बाप तो परमात्मा ही है। *हिमालय का समपॅण योग,* *---* *पवित्र ग्रंथ 1-223.*

ध्यानस्थ मुनि

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एक बड़े शिलाखण्ड पर बहूत बड़ी जोती नज़र आ रही थी ।. . . मै समझ गया . . . कोई मुनि अदृश्य रुप में ध्यान कर रहे थे . . .मै भी ध्यान करने बैठ गया . . . ध्यानस्थ मुनि बोले ,"मैं आपका ही इंतजार कर रहा था . . . आपके माध्यम से ही मेरी मुक्ति संभव है । बाबा स्वामी 

प्रश्न: गुरुजी, अगर मैं साधना क्रिया बंद कर दूँ तो आपकी कृपा मे कमी आयेगी ?

*गुरुजी*: मेरी कृपा में कमी नहीं आयेगी, वो बरसती रहेगी; कमी तुम्हारी पात्रता मे आयेगी। तुम्हारी ग्रहण करने की क्षमता में कमी आयेगी..... तुम एक कट़ोरी लेकर आते हो और बोलते हो 10 लिटर दूध डाल दो.....कैसे डाल दूँ......... बाबा स्वामी

अपने को जाना, सारी दुनिया जान ली।

आप आपके चित को बचके कैसे रख सकते हो , ये आपकी परीक्षा है। इतनी सारी बातें और इतनी सारी दुनिया की इन्फर्मेशन ( जानकारी) लेके करने का क्या ?  बताओ न , इतनी सब इन्फर्मेशन लेके मर जाओगे तो क्या फायदा?   अरे , अपने को जानो। अपने को जाना, सारी दुनिया जान ली। सच्ची बता रहा हूँ। अपने को जानने के बाद में आपको वो स्थिति प्राप्त होगी कि यहाँ बेठकरके दुनिया की खबर आप यहाँ ला सकते हो। अमेरिका में कौन आदमी कहाँ बैठा है सारी इन्फर्मेशन एक मिनट में यहाँ आ सकती है। लेकिन ये तब, जब आप अपने- आपको जानो। आप अपने को छोड़कर सारी दुनिया को जान लेते हैं। मधुचेतन्य 2017