आकास दर्शन

आकास दर्शन करने से मन शांत हुआ । आकास अविनाशी है तथा पंच महाभूतों में से एक है । आकाश..... जहाँ कुछ भी नहीं, न जल , न वायु और न अग्नि !!! है तो केवल शून्य !!! आकास दर्शन से वही शून्यता चित में ..... मन मे भी स्थापित हो गई । मन ने शांति का अनुभव किया । यह सब गुरुकृपा में ही हो पाया था । गुरुसक्तिया बच्चों के मुख से वह कहलवा देती है जो-जो करना हमारे लिए योग्य होता है । यह एक अलग ही अनुभव था । आसमान में उड़ते पक्षियों की कतार देखना , बादलो से बनती - बिगड़ती आकृतिया देखना, प्रात : तथा संध्या के समय बादलों का रंग बदलते देखना मुझे बहुत अच्छा लगता था । रात्रि के समय तारा मंडल - तारा समूह देखना मुझे अत्यंत प्रिय था । वषो से मैं सुबह - शाम - रात जब भी समय मिलता आसमान देखती थी । किंतु ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था । आसमान ने मानो सारे विचार ही हर लिए थे । विचारों के कारण मस्तिष्क में तनाव था । जैसे ही विचार शून्यता की  स्थिति प्राप्त हुई , तनाव स्वयं ही दूर हो गया । बचपन से आसमान देखने के शौक के कारण ही मेरा मन शांत रहता था । धन्यवाद गुरुदेव !!! आपने ही मुझे यह ज्ञान दिया ।

माँ - पुष्प २

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