मनुष्य हिंसक नहीं है
मनुष्य हिंसक नहीं है | यह उसका मूल स्वभाव है | और हिंसा करना मनुष्य के मूल,शुद्ध स्वभाव के विरुद्ध है | अपना जीवन बचाने के लिए दूसरे का जीवन लेना कहाँ तक उचित है ? अन्य जीवों में भी जीवन है और उनमें भी परमात्मा का एक अंश है और उस अंश से हमें समरसता स्थापित करनी है | इसलिए आध्यात्मिक साधना में रत व्यक्ति के लिए मांसाहार योग्य नहीं है | क्योंकि आध्यात्मिक साधना कर मनुष्य अपने भीतर की सजीव शक्तियों को जागृत करता है , अपनी ऊर्जा को जीवित करता है ,तो उस ऊर्जा को सजीव करते समय वह बहार से अन्य जीवों को खाकर उनके शरीर के माध्यम से मरी हुई ऊर्जा कैसे ग्रहण कर सकता है ? मनुष्य इन प्राणियों को मारकर कहीं न कहीं भीतर,अपने भीतर की मनुष्यता को ही मारते रहता है | मनुष्यता मनुष्य के भीतर की शक्ति है | उस मनुष्यता को मारकर हम कोई ही कार्य करेंगे , वह गलत ही होगा |
हि.स.यो.१/३२४
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