शरीरआत्मा कोअपने से अलग लगता ह
हम ऐसे शर्ट को बड़े प्यार से हाथ में लेकर बैठते हैं,उसे सहलाते हैं,उसे धन्यवाद देते हैं--
तूने मेरी बड़ी सेवा की है। तू मेरे जीवन की बड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बना है,तुझे पहनकर मैंने जीवन में बड़े-बड़े महान कार्य किए हैं। तू जब भी मेरे साथ रहा है, मुझे अपने कार्य में सदैव सफलता मिली है। तुझे पहनकर मैंने जो फोटो (छायाचित्र) खिंचाई,वह भी अच्छी आई है। तूने मेरे जीवन में बड़ा साथ दिया है लेकिन मैंने ही तेरी कद्र नहीं की है,मैंने तुझे लापरवाही से इस्तेमाल किया है । आज मैं तेरे प्रति सहानुभूति रखता हूँ,आज मुझे तेरी सहायता का एहसास हुआ है। ऐसा कहकर बार-बार अपने उस शर्ट को सहलाते हैं, उलट-पुलट कर देखते हैं--उसके बटन भी देखते हैं,उसकी सिलाई भी देखते हैं,वह कहीं फटा तो नहीं है,यह भी देखते हैं। एक प्रकार से आपके मन में उसके प्रति कृतज्ञता का भाव निर्मित हो जाता है और आप उसका साथ पाकर मन -ही-मन खूब खुश होते हैं।ठीक ऐसा ही भाव आत्मा अपने शरीर के प्रति व्यक्त करती है। वर्तमान शरीर भी आत्मा का वह शर्ट है जो हम पहनकर आए नहीं हैं,हमने इस जन्म के साथ उसे पहना है। यह गत जन्म में नहीं था। इस जन्म के साथ यह शरीर धारण किया है। यह अलग है और मैं अलग हूँ। मैं शरीर नहीं हूँ। यहअनुभूति ठीक वैसी ही होती है जैसे कि मैं शर्ट नहीं हूँ। शरीरआत्मा कोअपने से अलग लगता है। और जैसे शरीर की भव्यता के सामने शर्ट छोटा लगना प्रारंभ हो जाता है,ठीक वैसे ही,आत्मा की भव्यता के सामने शरीर छोटा लगना प्रारंभ हो जाता है।.....
हि.स.यो-४
पु-३३९
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