करताभाव
जब तक मै के करता भाव से आप बाहर नही निकलते ,समर्पण ध्यान मे प्रगति असंभव है ,आप आपका समय व्यर्थ गँवा रहे है ।एक म्यान में दो तलवारें नही रह सकती ,वैसे ही कर्ताभाव और समर्पण दोनो एकसाथ नही होता ।क्योंकि संपूर्ण समर्पण कर दिया तो आपका करताभाव कैसे रह सकता है ?. . .
बाबा स्वामी
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