आत्मसाक्षात्कार के बाद वे जान जाएँगी कि वे कौन हैं

मैं अपने विचारों में,अकेले ही बड़े महाराजश्री की समाधि के पास , पहाड़ी के एक सिरे पर बैठा था। नीचे का सब दिख रहा था। उतने में डाक्टर बाबा कब आ गए, मुझे पता भी नहीं चला। वे आकर मेरे पास बैठ गए और बड़े स्नेह से मेरी पीठ को थपथपाया तो मुझे एहसास हुआ कि वे आकर बैठ गए थे। मैंने उन्हें नमस्कार किया।   वे बोले," गुरुदेव,किस सोच में डूबे हो?यह सारा संसार तुम्ही को चलना है क्या?यह पहाड़ इतनी पवित्र है,इतनी संवेदनशील है कि यहाँ कोई भी विचार किसी को भी आए तो वह सभी को पता चल जाता है। मैं पहाड़ी के उस कोने में,अपनी गुफा में था,फिरभी तुम्हारा विचार मुझे वहाँ बैठे-बैठे ही पता चल गया। तुम बेकार की बातें सोच रहे हो। जब समाज में जा ओगे तो ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि तुमने जन्मों -जन्मों से अपने शिष्यों को आश्वासन दिया है--मोक्ष का मार्ग जब भी मुझे मिलेगा,वह मार्ग बताने के लिए मैं तुम्हारे जीवन में अवश्य आऊँगा।और वे सभी आत्माएँ प्रतीक्षारत हैं और अब उनका भी समय आ गया है कि उन्हें भी वह मार्ग मिले। तुम्हारे इन आश्वासनों के कारण ,तुम्हारी इस देने की इच्छा के कारण ही इतने गुरुओं ने तुम्हें अपना माध्यम बनाया है। और मोक्ष का महत्व तो प्रत्येक धर्म में है। प्रत्येक गुरु अपने पंथ में अपने शिष्यों को मोक्ष के बारे में जागरूक तो करता ही है इसलिए , दुनिया में कितने भी धर्म हों और कितने भी गुरु हों, कितने भी पंथ हो ,वे आत्माएँ अभी तक प्रतीक्षारत ही हैं जिन्हें तुमने आश्वासन दिया था। वे आत्माएँ अलग-अलग धर्मों में हैं,अलग-अलग पंथों में हैं। लेकिन जैसे ही तुम समाज में जाओगे,वे अलग-अलग देशों से आकर तुम तक पहूँच ही जाएँगी। तुम्हारे और उनेक बीच अभी एक पर्दा है,वह पर्दा आत्मसाक्षात्कार के बाद गिर जाएगा। आत्मसाक्षात्कार के बाद वे जान जाएँगी कि वे कौन हैं,तुम कौन होऔर तुमने उन्हें क्या आश्वासन दिया था।"......

हि.स.यो-४                 
पु-३४२

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