माँ कुन्डलिनी

शरीर  को  जब  और  देखने  की  कोशिश  की  तो  केवल  चक्र  व  ऊन  पर  होनेवाले  स्पंदन  और  उनको  एक  माला  के  धागे  के  समान  जोडनेवालि  माँ  कुन्डलिनी  दिखी  जो  बड़ी  प्रकाशमान  थी ।एक  सुनहरी  ज्वाला  के  समान  वह  दिख  रही  थी ।और  उसको  देखने  का  प्रयास  करता  तो  चक्र  कम  दिखने  लगते  थे  क्योंकि  चक्रों  से  अधिक  वह  प्रकाशमान  थी ।वह  कुन्डलिनी  आत्मा  के  प्रकाश  के  साथ  थी  और  इसी  कारण  इन  दोनो  का  संयुक्त  प्रभाव  शरीर  के  बाहर  भी  आभामंडल  के  रुप  मे  प्रतिबिम्बित  हो  रहा  था ।. . यह  सब  होता  है ,सुना  था ,पर  देखा  आज  ही  था !

पूज्य स्वामीजी
  ही .स .योग .
    २ - १९६
      

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